Edited By Jyoti,Updated: 30 Nov, 2020 12:48 PM
आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बहुत सी नीतियों के बारे में बताया है। इन नीतियों को अपने जीवन में अपनाने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफलता तो पाता ही है। साथ ही साथ उसे जीवन जीने का असली सलीका आता है।
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आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बहुत सी नीतियों के बारे में बताया है। इन नीतियों को अपने जीवन में अपनाने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफलता तो पाता ही है। साथ ही साथ उसे जीवन जीने का असली सलीका आता है। मगर आज कल हर कोई अपने जीवन में इतना ज्यादा व्यस्त दिखाई देता है कि किसी के पास अपने लिए समय नहीं फिर ऐसे शास्त्र आदि को पड़ना तो बहुत दूर की बात है। यही कारण है कि हम अपने वेबसाइट के माध्यम से आपको समय-समय पर इनके नीति शास्त्र में वर्णित नीतियों से रूबरू करवाते हैं। आज भी अपनी इसी कड़ी को बरकरार रखते हुए हम आपको बताने वाले हैं इनके चाणक्य नीति सूत्र में दर्ज दो श्लोकों के बारे में, जिसमें मनुष्य जीवन के दो अहम पहलू जुड़े हैं।
बुरी आदतें विनाश का कारण
श्लोक- शत्रु व्यसनं श्रवणसुखम्।
किसी शत्रु राजा के दुर्गुणों अथवा किसी बुरी आदत के बारे में सुनकर सुख इसलिए मिलता है कि उसकी बुरी आदत ही उसके विनाश का कारण बनती है। शत्रु बुरी आदत के कारण मजबूर हो जाता है और राजा आसानी से अपना लक्ष्य हासिल कर लेता है।
धनहीन की बुद्धि दिखाई नहीं देती
श्लोक- अधनस्य बुद्धिर्न विद्यते॥
निर्धन व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों न हो, उसकी योग्यता पर जल्दी दृष्टि नहीं जाती। सब उसे मूर्ख ही समझते हैं और उसका अपमान तक कर डालते हैं। इसका मुख्य कारण उस निर्धन विद्वान के पास धन की कमी होना है।