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Chandrabhaga Sangam: स्वर्ग से आया है इस संगम स्थल का पानी !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Aug, 2021 12:08 PM

chandrabhaga sangam

क्या कोई जानता है कि पश्चिमी हिमालय का हरिद्वार लाहौल-स्पीति का चंद्रभागा संगम है। युगों-युगों से यह संगम जहां इतिहास का साक्षी रहा है वहीं पश्चिमी हिमालय के लोग इसे हरिद्वार के समान ही

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lahaul spiti ka haridwar chandrabhaga sangam: क्या कोई जानता है कि पश्चिमी हिमालय का हरिद्वार लाहौल-स्पीति का चंद्रभागा संगम है। युगों-युगों से यह संगम जहां इतिहास का साक्षी रहा है वहीं पश्चिमी हिमालय के लोग इसे हरिद्वार के समान ही पवित्र मानते हैं। कबायली जिला सहित लेह-लद्दाख व चीन अधिकृत तिब्बत के लोगों के लिए यह स्थल हरिद्वार से कम नहीं है। आज भी लोग इसी संगम स्थल पर अपने पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित कर पुण्य कमाते हैं।

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सर्दियों में कबायली लोग 6 माह तक बर्फ के कारावास में कैद हो जाते थे और इसी स्थल में अस्थियां विसर्जित करते रहे हैं। हालांकि, अब अटल सुरंग रोहतांग के खुल जाने से कबायली क्षेत्र के लोगों का आवागमन आसान हो गया है लेकिन अब यह स्थल धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में उभर कर सामने आ गया है। हालांकि, यहां का धार्मिक महत्व पहले से ही है लेकिन रोहतांग दर्रा बंद और अति दुर्गम होने के कारण इस स्थल के दर्शन सीमित लोग ही कर पाते थे परंतु अटल सुरंग के खुल जाने से देश-दुनिया के लोगों के लिए यह सुंदर स्थल आकर्षण का केंद्र बन चुका है और इस पवित्र स्थल के संरक्षण की भी तैयारियां होने लगी हैं। 

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संगम का इतिहास
इस संगम स्थल के इतिहास पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो चंद्रभागा ने कई युग देखे हैं। बौद्ध मान्यता के अनुसार नदी का नाम ‘तंगती’ पड़ा यानी ‘स्वर्ग का पानी।’ बौद्ध धर्म के लोग इस पानी को स्वर्ग से आया हुआ मानते हैं। बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘विमान बत्थू’ में इस नदी को ‘तंगती’ कहा गया है। अरबी और फारसी में मुगलों ने नदी का नाम ‘चिनाब’ दिया जिसका अर्थ था ‘आब-ए-चीन’ यानी ‘चीन से आने वाला पानी।’ वहीं, यूनानी ग्रंथों में नदी का नाम ‘हाईपसिस’ पड़ा। यूनानियों ने इस नदी को अपशगुनी नदी माना क्योंकि सिकंदर की छाती में आखिरी तीर इसी नदी के तट पर लगा था। माना जाता है कि सिकंदर को यहीं आकर शिकस्त मिली थी। वहीं, वैदिक काल में चंद्रभागा नदी का नाम ‘आस्किनी’ पड़ा। 

ऋग्वेद के ‘नदी सोख्त’ अध्याय में नदी को ‘अस्किनी’ नाम से पुकारा गया है। पौराणिक काल में शिव पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत में इस नदी को चंद्रभागा का नाम दिया है। वहीं, बौद्ध सिद्ध ग्रंथ में विस्तार से बताया गया है कि इसी संगम पर द्रोपदी का अंतिम संस्कार हुआ था। 

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यही नहीं इस ग्रंथ में यह भी दर्शाया गया है कि यह स्थल लोमश ऋषि की तपोस्थली है। वर्तमान में नदी को लाहौल-स्पीति में चंद्रभागा व आगे चिनाब के नाम से जाना जाता है। खास बात है कि यह नदी पश्चिमी हिमालय के कई देशों को सींचती है जिसमें तिब्बत, भारत व पाकिस्तान शामिल हैं।

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भविष्य की योजनाएं
भविष्य में यहां पर हरिद्वार की तर्ज पर घाट बनाने की भी योजना है। यहां के लोगों का कहना है कि वे भौगोलिक तौर पर अति दुर्गम क्षेत्र में रहते हैं जो 6 माह तक बर्फ के कारावास में परिवर्तित हो जाता है। उसी स्थिति को नजर में रखते हुए इस क्षेत्र के लोग सदियों से इसी संगम स्थल पर अस्थियां विसर्जित करते आए हैं इसलिए उनके लिए यह स्थल पवित्र तीर्थ हरिद्वार से कम नहीं है और इस स्थल का वर्तमान में विकास होना आवश्यक है जिससे यहां की धार्मिक आस्था व नदी के इतिहास का संवर्धन किया जा सके।

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दिल्ली-लेह मार्ग पर है चंद्रभागा
यह स्थल लाहौल-स्पीति के जिला मुख्यालय केलांग से ठीक 7 किलोमीटर पहले देश के सबसे ऊंचे दिल्ली-लेह मार्ग पर पड़ता है। यहां पर चंद्रा व भागा नदी का संगम होता है और यहां से आगे यह नदी चिनाब बन जाती है तथा आगे जाकर पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। 

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दोनों नदियों के उद्गम स्थल
चंद्रा नदी स्पीति घाटी की तरफ से आती है जबकि भागा नदी लाहौल घाटी से आती है। दोनों ही नदियों का उद्गम स्थल बारालाचा दर्रा है। खास बात है कि बारालाचा दर्रा के एक तरफ से चंद्रा नदी निकलती है जबकि दूसरे छोर से भागा निकलती है। चंद्रा नदी स्पीति घाटी को सिंचित करती है और भागा लाहौल घाटी को।

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कैसे पहुंचें
वर्तमान में चंद्रभागा संगम जाने का रास्ता बिल्कुल सुगम है। यदि आप हवाई मार्ग द्वारा कुल्लू-मनाली स्थित भुंतर एयरपोर्ट में उतरते हो तो वहां से कुल्लू 10 किलोमीटर का सफर है। यहां से 45 किलोमीटर आगे मनाली पड़ता है जो विश्व भर में पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है।

मनाली के बाद सोलंग नाला होते हुए अटल टनल तक का रास्ता प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है और इस पर कई रोमांचकारी स्थल हैं। आधुनिक सुविधा से लैस 9 किलोमीटर की अटल रोहतांग टनल से दूसरी तरफ निकलने पर शीत मरुस्थल की सुंदर वादियों के दर्शन हो जाते हैं। 

टनल के पार कुछ ही दूरी में लाहौल का पहला गांव सिरसू नजर आएगा और यहां घेपन ऋषि का प्राचीन मंदिर है। घेपन ऋषि के दर्शन के बाद सीधे उसी दिल्ली-लेह मार्ग पर आगे बढ़ते गोंदला गांव और अन्य छोटे गांव आते हैं और गोंदला से आगे तांदी पड़ता है। अटल रोहतांग टनल से तांदी तक का यह सफर 36.8 किलोमीटर का है और बस यहीं पर भागा-चंद्रा नदी का संगम स्थल है। जहां आप लोगों को इस पवित्र स्थल के दर्शन हो जाएंगे। 

सर्दियों में चंद्रभागा नदी जम जाती है और कई बार तो संगम का पानी इतना ठोस हो जाता है कि लोग इस पर आइस स्केटिंग तक करते हैं। गर्मियों में स्थल के चारों तरफ सुंदर हरियाली रहती है।        

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