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Chandrashekhar death anniversary: ‘चंद्रशेखर’ अपनी आखिरी सांस तक ‘आजाद’ ही रहे

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Feb, 2025 09:38 AM

chandrashekhar death anniversary

Chandrashekhar Azad Death Anniversary 2025: दुनिया में जिस सरकार का सूर्य अस्त नहीं होता था, वह शक्तिशाली सरकार भी चंद्रशेखर आजाद को कभी बेड़ियों में जकड़ नहीं पाई। चंद्रशेखर हमेशा आजाद ही रहे, अपनी आखिरी सांस तक। इस वीर का जन्म 23 जुलाई, 1906 को...

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Chandrashekhar Azad Death Anniversary 2025: दुनिया में जिस सरकार का सूर्य अस्त नहीं होता था, वह शक्तिशाली सरकार भी चंद्रशेखर आजाद को कभी बेड़ियों में जकड़ नहीं पाई। चंद्रशेखर हमेशा आजाद ही रहे, अपनी आखिरी सांस तक। इस वीर का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश की अलीराजपुरा रियासत के मामरा (अब चन्द्रशेखर आजाद नगर) ग्राम में मां जगरानी की कोख से पिता सीताराम तिवारी की पांचवीं संतान के रूप में हुआ। 1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चंद्रशेखर उस समय पढ़ाई कर रहे थे। 14 वर्ष की आयु में काशी संस्कृत महाविद्यालय में पढ़ते हुए इन्होंने असहयोग आंदोलन में पहला धरना दिया, जिस कारण पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर न्यायाधीश के सामने पेश किया।

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न्यायाधीश ने जब बालक चंद्रशेखर से इनका नाम, पिता का नाम तथा पता पूछा तो निर्भीक चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्र और निवास बंदीगृह बताया, जिससे इनका नाम हमेशा के लिए चंद्रशेखर आजाद मशहूर हो गया। मजिस्ट्रेट ने गुस्से में इन्हें 15 बेंतों की कड़ी सजा सुनाई, जिसे इस निर्भीक बालक ने प्रत्येक बेंत के शरीर पर पड़ने पर ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ का जयघोष कर स्वीकार किया। इस घटना से अन्य क्रांतिकारियों भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव से इनका संपर्क हुआ और आजाद पूरी तरह से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। 

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लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिए 17 दिसम्बर, 1928 को आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर के पुलिस अधीक्षक सांडर्स का वध कर दिया। क्रांतिकारियों को देश आजाद करवाने के लिए हथियार खरीदने के लिए धन की कमी महसूस होने लगी तो सभी ने एकमत से सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को कलकत्ता मेल को राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर के नेतृत्व में लूटने की योजना बनी, जिसे इन्होंने अपने 8 साथियों की सहायता से काकोरी स्टेशन के पास अंजाम दिया। 

इस घटना से ब्रिटिश सरकार पूरी तरह बौखला गई और उसने छापेमारी कर कुछ क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया, जिन्होंने पुलिस के टॉर्चर से अपने साथियों के ठिकाने बता दिए। ब्रिटिश पुलिस ने कई क्रांतिकारियों को पकड़ लिया लेकिन आजाद पकड़ में नहीं आ सके।

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27 फरवरी, 1931 को आजाद एक साथी के साथ इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में बैठे थे कि किसी देशद्रोही मुखबिर ने पुलिस को खबर कर दी। 20 मिनट तक भारत माता के इस शेर ने पुलिस का मुकाबला किया और अपने बेहतरीन निशाने से कइयों को ढेर कर दिया। इनके शरीर में भी कई गोलियां समा गईं। घायल चंद्रशेखर ने अंतिम गोली अपनी कनपटी पर मारकर जीवन लीला समाप्त कर आजादी के महायज्ञ में जीवन की आहुति डाल दी। इनका पुलिस में इतना खौफ था कि शहीद होने के काफी समय बाद तक पुलिस इनके पास फटक भी नहीं सकी।

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