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चारधाम यात्रा पर जाने वालों के लिए खास जानकारी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Apr, 2018 04:05 PM

char dham yatra

भारत की चारों दिशाओं में चार धाम हैं उत्तर हिमालय में बद्रीनाथ-बद्रीनारायण धाम है, पूर्व में समस्त जगत के नाथ जगन्नाथ-जगन्नाथपुरी धाम हैं, पश्चिम में द्वारिकापुरी धाम में द्वारकानाथ विराजमान हैं तथा दक्षिण में राम हैं। ईश्वर जिनके अथवा राम के जो...

भारत की चारों दिशाओं में चार धाम हैं उत्तर हिमालय में बद्रीनाथ-बद्रीनारायण धाम है, पूर्व में समस्त जगत के नाथ जगन्नाथ-जगन्नाथपुरी धाम हैं, पश्चिम में द्वारिकापुरी धाम में द्वारकानाथ विराजमान हैं तथा दक्षिण में राम हैं। ईश्वर जिनके अथवा राम के जो ईश्वर हैं ऐसे रामेश्वरनाथ समुद्र तट पर हैं। पर्वत राज हिमालय के विभिन्न स्थलों पर अवस्थित यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ को भी चार धाम माना जाता है, जहां श्रद्धालु प्रति वर्ष अक्षय तृतीया (वैसाख) के जाड़ों के प्रारंभ होने तक दर्शन पूजन के लिए कष्टप्रद यात्रा करते हुए जाते हैं, चाह रहती है मोक्ष प्राप्ति की।


भारतीय ग्रंथों के अनुसार 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ धाम हैं। इसे उत्तराखंड की यात्रा भी कहते हैं। उत्तराखंड यात्रा में हरिद्वार, गंगाद्वार, मायापुरी सहित ऋषिकेश व पंचकेदार तथा कैलाश मानसरोवर आदि भी सम्मिलित हैं।


केदारनाथ वही तीर्थ स्थल है, जहां प्रकृति विनाश बनकर बरसी और हजारों लोग काल के ग्रास बन गए, हजारों अब भी लापता हैं, कई मानवीय संरचनाएं ध्वस्त हो गईं, गांव भी लुप्त हो गए। केदारनाथ मंदिर और इसके आसपास के इलाके सहित पूरे चार धाम में मची तबाही ने देश ही नहीं, दुनिया को हिलाकर रख दिया था। जहां यह घटना घटी है, वहां मौत के सन्नाटे को तोड़ती मंदिर की घंटियां, शंखों की गूंज और आरती के शब्द एक बार फिर वातावरण में तैरने लगे हैं। श्रद्धालु भी अच्छी संख्या में पहुंचने लगे हैं, जबकि सड़कों, पुलों और इमारतों से लेकर लगभग हर वस्तु पर आपदा के निशान मौजूद हैं। 


सड़कें अब तक मज़बूत नहीं बन पाई हैं, दुरुस्त की जा रही हैं। प्रकृति के कहर का भय भी छाया है और व्यवस्था में त्रुटियां भी हैं, पर फिर भी इन सबके साथ नए तरीके की तैयारियां और सुरक्षा-व्यवस्था भी है। इन सबसे परे श्रद्धालुओं की अडिग आस्था और ईश्वर के प्रति अगाध विश्वास तो है ही। प्राचीन गहरवार साम्राज्य का केंद्र जिसे मुख-सुख से गढ़वार व गढ़वाल कहा गया, यहां की बोली भाषा, संस्कृति, परिवेश को भी गढ़वाली कहा जाता है। इसी प्रांत में हिमालयीन चारों धाम स्थित हैं। चार धाम यात्रा में सर्वप्रथम यमुनोत्री, गंगोत्री उसके बाद केदारनाथ और अंत में बद्रीनाथ पहुंचने की परम्परा है।


यमुनोत्री समुद्र तल से 3195 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां यमुना नदी का उद्गम स्थान है। समीप ही सूर्यपुत्री व शनि और यम की बहन यमुना जी का मंदिर स्थित है। 
यमुना मंदिर का पुन:निर्माण कछवाहा राजवंश की जयपुर (राजस्थान) की महारानी गुलेरिया साहिबा ने 19वीं सदी में करवाया था। यमुनोत्री में गर्मजल का सूर्यकुंड भी प्रसिद्ध है। मंदिर के कपाट प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं और दीपावली पश्चात गोवर्धन पूजा के दिन छह मास के लिए बंद हो जाते हैं, यानी कार्तिक शुक्ल प्रथमा के दिन।


यहां पहुंचने के लिए हरिद्वार या ऋषिकेश से टिहरी (गढ़वाल), बरकोट होते हुए सड़क मार्ग से जानकी पट्टी तक लगभग 220 कि.मी. की दूरी तय करनी होती है और यहां से 6 कि.मी. की चढ़ाई पैदल अथवा टट्टुओं या पालकी पर सवार होकर तय करनी पड़ती है।


भागीरथी गंगा का उद्गम स्थान है गंगोत्री धाम। यहां के कपाट भी अक्षय तृतीया को ही खुलते हैं। समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पावन तीर्थ स्थान पर गंगोत्री का मंदिर है। गंगा अवतरण के लिए यहां सूर्यवंशी, इक्ष्वाकुवंशी सम्राट भागीरथ ने एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर प्रचंड तपस्या की थी। तब भागीरथी गंगा ने यहीं पर धरती को स्पर्श किया था। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18वीं सदी में प्राचीन गंगोत्री मंदिर के मूल स्थान पर ही नवीन मंदिर का पुन: निर्माण हुआ।


मान्यता है कि इसी स्थान पर महाभारत में मारे गए अपने परिजनों की आत्मिक शांति के लिए पांडवों ने महान देवयज्ञ अनुष्ठान सम्पन्न किया था। यमुनोत्री की तुलना में गंगोत्री की जनसंख्या अधिक है। गंगोत्री से लगभग 15 मील की दूरी पर गोमुख है, जहां स्थित हिमनद से गंगा का उद्भव होता है, गोमुख पहुंचने की राह बड़ी कठिन है पर फिर भी लोग हिम्मत करके जाते हैं।


गंगोत्री तक पहुंचने के लिए मंदिर के निकट तक सड़क मार्ग है। यमुनोत्री से वापस जानकी पट्टी आकर बरकोट से उत्तरकाशी होते हुए लगभग 230 कि.मी. की दूरी तय कर सड़क मार्ग से गंगोत्री पहुंचते हैं। राह में ठहरने के लिए उत्तरकाशी, भंटवाड़ी, गंगनानी, हर्सिल व धराली में होटल और धर्मशालाएं हैं। 


केदारनाथ धाम समुद्र तल से लगभग 3583 मीटर की ऊंचाई पर है। भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसकी गणना होती है। कहते हैं आदि शंकराचार्य ने अपनी मां के गहनों आदि से उक्त मंदिर का पुनरुद्धार, जीर्णोद्धार कराया था। वहीं उनके ही उत्तराधिकारी शृंखला के आचार्य धीरशंकर या अभिनव शंकर आठवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध अद्वैत दार्शनिक ने भी केदारनाथ मंदिर का पुनरुद्धार कराया था। यहां से वह व्यास गुफा गए और फिर संसार में न लौटे। उनकी स्मारक समाधि केदारनाथ मंदिर के पीछे बना दी गई। जहां आदि शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में संसार त्यागा, वहीं अभिनव शंकर ने 40 वर्ष की आयु में।


बहुधा दोनों के क्रियाकलाप व यात्राएं ऐसी गडमड्डा कर दी गई हैं कि आठवीं शताब्दी वाले शंकराचार्य को ही प्रथम शंकराचार्य होने का भ्रम उत्पन्न हो जाता है।


केदारनाथ धाम से 6 कि.मी. दूरी चौखम्बा पर्वत पर वासुकी ताल है। यहां ब्रह्मकमल होते हैं। यहां आई प्राकृतिक आपदा में मंदिर के आसपास का इलाका सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। उत्तरकाशी से रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी, सोनप्रयाग होते हुए सड़क  मार्ग से गौरीकुंड तक पहुंचने के बाद 14 कि.मी. का यह पांव-पैदल मार्ग और रास्ते में पडऩे वाले गांव पूरी तरह नष्ट हो गए।


अब एक नया मार्ग बनाया गया है जो 22 कि.मी. का है। इस मार्ग में लिनचोली तक घोड़े और पालकी ली जा सकती है लेकिन वहां से 5. कि.मी. का मार्ग सभी को पैदल ही तय करना पड़ता है। देहरादून से हवाई सेवा भी ली जा रही है। केदारनाथ के पैदल मार्ग पर गढ़वाल मंडल विकास निगम और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने भोजन और विश्राम स्थल की व्यवस्था की है।


भगवान विष्णु बद्री विशाल का धाम बद्रीनाथ तीर्थ समुद्र तल से 3150 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। मंदिर में नर-नारायण के विग्रहों की पूजा होती है और अचल ज्ञानश्रोत का प्रतीक अखंड दीप जलता है। इस स्थान को अनादि सिद्ध कहा जाता है। माना जाता है कि उक्त स्थान बौद्धों के अधिकार में आ गया था, पर उन्हें स्थान छोड़कर जाना पड़ा। अौर उन्होनें विग्रह को सामने के नारदकुंड में डाल दिया था। आदि शंकराचार्य ने मंदिर का पुनरुद्धार किया और नारदकुंड से प्रतिमा को निकालकर पुन: स्थापित किया। 


एक बार पुन: मंदिर नष्ट हुआ तब भी छठे सुप्रसिद्ध शंकराचार्य अभिनव शंकर या धीर शंकर ने तत्कालीन गढ़वाल नरेश द्वारा मंदिर का पुन: निर्माण करवाया और विग्रह स्थापित कर वहां की व्यवस्था उनके जिम्में कर दी थी। यहां भी गर्म पानी का तप्तकुंड है, जिसे आदितीर्थ कहते हैं। मान्यता है कि नारायण के चरणों के समीप प्रकाशमय अग्नि तीर्थ और भगवान शिव शंकर के केदार संज्ञक महालिंग के दर्शन करके मनुष्य पुनर्जन्म का भागी नहीं होता। केदारनाथ से लौटकर गौरीकुंड से गुप्तकाशी, चोक्ता (चोटवा), चमोली और जोशीमठ होते हुए सड़क मार्ग को लगभग 221 कि.मी. की दूरी तय कर बद्रीनाथ बाबा धाम तक पहुंचा जा सकता है।

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