Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Aug, 2023 10:35 AM
छड़ी मुबारक यानी ‘भगवा वस्त्रधारी भगवान शिव की पवित्र गदा’ को जारी वार्षिक श्री अमरनाथ यात्रा के हिस्से के रूप में विशेष पूजा के लिए हरियाली अमावस्या
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Chari Mubarak Yatra 2023: छड़ी मुबारक यानी ‘भगवा वस्त्रधारी भगवान शिव की पवित्र गदा’ को जारी वार्षिक श्री अमरनाथ यात्रा के हिस्से के रूप में विशेष पूजा के लिए हरियाली अमावस्या (श्रावण अमावस्या) के अवसर पर श्रीनगर के ऐतिहासिक शंकराचार्य मंदिर में ले जाया गया। इसके बाद छड़ी मुबारक को देवी के दर्शन के लिए यहां हरि पर्वत स्थित ‘शारिका-भवानी’ मंदिर लाया गया और उसके बाद श्री अमरेश्वर मंदिर दशनामी अखाड़े में अनुष्ठान किया गया। इसके बाद ‘नाग-पंचमी’ के शुभ अवसर पर दशनामी अखाड़े में छड़ी-पूजन हुआ।
28 अगस्त को चंदनवाड़ी से होते हुए शेषनाग में रात्रि विश्राम के बाद 29 और 30 अगस्त को पंचतरणी के बाद 31 अगस्त को ‘श्रावण-पूर्णिमा’ की सुबह पूजन और दर्शन करने के लिए पवित्र अमरनाथ गुफा मंदिर में छड़ी मुबारक को ले जाया जाएगा। पवित्र गुफा मंदिर में पूजा के बाद अगले दिन पहलगाम में लिद्दर नदी में इसका ‘विसर्जन’ होगा।
What is happy stick क्या है छड़ी मुबारक
छड़ी मुबारक की रस्म चांदी की एक छड़ी से जुड़ी है। विश्वास है कि इस छड़ी में भगवान शिव की अलौकिक शक्तियां निहित हैं। जनश्रुति है कि महर्षि कश्यप ने यह छड़ी भगवान शिव को इस आदेश के साथ सौंपी थी कि इसे प्रति वर्ष अमरनाथ लाया जाए।
History of Shankaracharya Temple शंकराचार्य मंदिर का इतिहास
इसे बौद्धों द्वारा ज्येष्ठेश्वर मंदिर या पास-पहाड़ के रूप में भी जाना जाता है। यह श्रीनगर में जबरवान पर्वत पर शंकराचार्य पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जिसे फारसी और यहूदी ‘बाग-ए-सुलेमान’ या ‘गार्डन ऑफ किंग सोलोमन’ भी कहते हैं। मंदिर के अंदर फारसी शिलालेख भी मिले हैं। इसे कश्मीर घाटी का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर जमीन के स्तर से 1,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है और यहां से श्रीनगर शहर को देखा जा सकता है। मंदिर 200 ईस्वी पूर्व का है हालांकि इसकी वर्तमान संरचना संभवत: 9वीं शताब्दी ईस्वी की है।
आदि शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर का भ्रमण किए जाने के बाद से ही उनका नाम इस मंदिर के साथ जुड़ा और इस तरह मंदिर का नाम शंकराचार्य पड़ा। यह प्राचीन मंदिर वास्तुकला की स्वदेशी प्रारंभिक कश्मीरी शैली में बनाया गया है और इसमें उन दिनों प्रचलित तकनीकों को अपनाया गया है। प्रारंभिक शिहारा शैली इस इमारत के डिजाइन में प्रमुख रूप से स्पष्ट है और यह घोड़े की नाल के आर्क प्रकार के पैटर्न का संकेत है।