Chari Mubarak Yatra- जानिए, क्या है अमरनाथ यात्रा और छड़ी मुबारक का Connection

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Aug, 2024 04:11 AM

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भारतीय हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक आयोजनों में से अमरनाथ यात्रा और छड़ी मुबारक एक हैं। यह विशेष रूप से कश्मीर में आयोजित होती है। अमरनाथ यात्रा

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Chari Mubarak Yatra 2024- भारतीय हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक आयोजनों में से अमरनाथ यात्रा और छड़ी मुबारक एक हैं। यह विशेष रूप से कश्मीर में आयोजित होती है। अमरनाथ यात्रा हर साल सावन के महीने में आयोजित होती है, जो जुलाई और अगस्त के बीच आता है। यह यात्रा अमरनाथ गुफा मंदिर की ओर की जाती है, जो कश्मीर की पहाड़ियों में स्थित है। मान्यता है कि इस गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। यात्रा करने वाले भक्त इस गुफा में एक प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन करते हैं, जो बर्फ से बनता है और हर साल आकार में बदलता है। यात्रा के दौरान, भक्त कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं और श्रद्धा के साथ यात्रा करते हैं।

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Relation of Amarnath Yatra and Chhari Mubarak अमरनाथ यात्रा और छड़ी मुबारक का संबंध
छड़ी मुबारक एक पवित्र छड़ी है, जिसे यात्रा के दौरान पवित्र गुफा के दर्शन के लिए ले जाया जाता है। इस छड़ी को यात्रा के आरंभ में श्रीनगर के बारामुला जिले से शुरू किया जाता है और यह अमरनाथ गुफा तक पहुंचाई जाती है। छड़ी को भगवान शिव की प्रतीक मानकर इसे अत्यधिक श्रद्धा के साथ ले जाया जाता है। यात्रा की समाप्ति पर छड़ी को गुफा में स्थापित किया जाता है और इसके बाद यह यात्रा संपन्न होती है।

इन दोनों का आपसी संबंध इस प्रकार है कि छड़ी मुबारक अमरनाथ यात्रा का एक अभिन्न अंग है। यह यात्रा और छड़ी दोनों ही अमरनाथ गुफा की पवित्रता और यात्रा की धार्मिक महत्ता को दर्शाते हैं। छड़ी मुबारक का प्रस्थान और अमरनाथ गुफा की यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्तों की श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।

What is Chhari Mubarak क्या है छड़ी मुबारक
छड़ी मुबारक की रस्म चांदी की एक छड़ी से जुड़ी है। विश्वास है कि इस छड़ी में भगवान शिव की अलौकिक शक्तियां निहित हैं। जनश्रुति है कि महर्षि कश्यप ने यह छड़ी भगवान शिव को इस आदेश के साथ सौंपी थी कि इसे प्रति वर्ष अमरनाथ लाया जाए।

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History of Shankaracharya Temple शंकराचार्य मंदिर का इतिहास
इसे बौद्धों द्वारा ज्येष्ठेश्वर मंदिर या पास-पहाड़ के रूप में भी जाना जाता है। यह श्रीनगर में जबरवान पर्वत पर शंकराचार्य पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जिसे फारसी और यहूदी ‘बाग-ए-सुलेमान’ या ‘गार्डन ऑफ किंग सोलोमन’ भी कहते हैं। मंदिर के अंदर फारसी शिलालेख भी मिले हैं। इसे कश्मीर घाटी का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर जमीन के स्तर से 1,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है और यहां से श्रीनगर शहर को देखा जा सकता है। मंदिर 200 ईस्वी पूर्व का है हालांकि इसकी वर्तमान संरचना संभवत: 9वीं शताब्दी ईस्वी की है।

आदि शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर का भ्रमण किए जाने के बाद से ही उनका नाम इस मंदिर के साथ जुड़ा और इस तरह मंदिर का नाम शंकराचार्य पड़ा। यह प्राचीन मंदिर वास्तुकला की स्वदेशी प्रारंभिक कश्मीरी शैली में बनाया गया है और इसमें उन दिनों प्रचलित तकनीकों को अपनाया गया है। प्रारंभिक शिहारा शैली इस इमारत के डिजाइन में प्रमुख रूप से स्पष्ट है और यह घोड़े की नाल के आर्क प्रकार के पैटर्न का संकेत है।

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