मनाली में बसा है ऋषि वशिष्ठ का ये आकर्षक मंदिर

Edited By Jyoti,Updated: 12 Jun, 2018 04:42 PM

charming temple of rishi vashishta

मनाली से वशिष्ठ की दूरी मात्र अढ़ाई किलोमीटर है। मुख्य मार्ग पर ब्यास नदी के बाएं तट पर चलते हुए मनाली से 1.6 किलोमीटर की दूरी तय करने पर दाईं ओर (पहाड़ी के साथ-साथ) एक नई सड़क जुड़ती है।

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मनाली से वशिष्ठ की दूरी मात्र अढ़ाई किलोमीटर है। मुख्य मार्ग पर ब्यास नदी के बाएं तट पर चलते हुए मनाली से 1.6 किलोमीटर की दूरी तय करने पर दाईं ओर (पहाड़ी के साथ-साथ) एक नई सड़क जुड़ती है। यहां से वशिष्ठ मात्र एक किलोमीटर के अंतर पर स्थित है। पर्यटकों की लोकप्रिय कुल्लू घाटी में मनाली की परिक्रमा में ऋषि वशिष्ठ के नाम से जुड़े इस गांव में भगवान राम और ऋषि वशिष्ठ के दो लघु मंदिर हैं। 

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ऋषि वशिष्ठ की प्रतिमा (प्रस्तर) एक लघु प्रकोष्ठ में अवस्थित है। इस स्थान की अन्य विशेषताओं में यहां गर्म जल के प्राकृतिक स्रोत हैं। इनसे उठती भाप गंधक की गंध देती है। जहां तीर्थ यात्री इन जलाशयों में पुण्य अर्जित करने की सद्भावना से स्नान करते हैं, वहीं सामान्य लोग चर्म रोग की चिकित्सा के लिए भी इसे फलदायी मानते हैं। देशी-विदेशी पर्यटकों के दृष्टिगत इस खनिज जल के स्नान के लिए यहीं निकट में फुहारा घर भी बने हैं। 

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वशिष्ठ के इस स्थान पर प्राचीन देवालय और बावड़ी के कुछ ऐसे अवशेष भी ध्यान आकर्षित करते हैं जो मध्य युगीन मंदिर स्थापत्य की किन्हीं विशेषताओं का वरण किए हुए हैं। यहां स्थित देवालय का जैसा पुनरुद्धार हुआ है, वह भी अवलोकनीय है। यह निर्माण  ‘काठकुणी’ शैली का परिचायक है। इस देशज शैली में बिना गारे की शुष्क चिनाई और देवदार की धरणियों का प्रयोग हुआ है। 

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अतीत में इस क्षेत्र के वन देवतरू (देवदार) से भरे पड़े थे। अत: देवालय एवं स्थानीय लोगों के आवास गृहों में देवदार का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ है। आज भी मनाली के परिसर में अथवा हिमाचल के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में जो स्थान पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से सुरक्षित बचा है, उसमें आकाशचुंबी, विशालकाय, दीर्घजीवी एवं सदाबहार ये वृक्ष सचमुच ही तो देवतरू (देवदार) की सही संज्ञा से अभिहित हुए हैं।
 

स्थानीय लोगों की मान्यता है कि मनाली मनु की जन्म स्थली अथवा तपोभूमि रही है। संस्कृत साहित्य में इन्हें ब्रह्मा के मानसपुत्र स्वायंभुव मनु माना गया है, जो आदि प्रजापति तथा मनु स्मृति के कर्ता और मन्वंतर के अधिष्ठाता हैं। जहां मनु का मंदिर है वह स्थान पुरानी मनाली कहलाता है। यहां लोग काठकुणी शैली के परम्परागत गृहों में रहते आ रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इनकी जीवनशैली पर देश की स्वतंत्रता के बाद आए परिवर्तन का जैसे कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। मनु महाराज की स्मृति में यहां एक नव-निर्मित मंदिर दर्शनीय है।

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इसके गर्भ गृह में ‘मनु ऋषि’ और ‘हिडम्बा’ की पाषाण प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। गर्भ गृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बना है।
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