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ब्रह्मा जी को समर्पित अनूठा मंदिर ‘श्री चतुर्मुख ब्रह्मलिंगेश्वर’

Edited By Jyoti,Updated: 12 Jan, 2022 05:15 PM

chaturmukha brahma lingeshwara temple

सम्पूर्ण पृथ्वी में सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा जी के गिने-चुने मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है श्री चतुर्मुख ब्रह्मलिंगेश्वर मंदिर। हालांकि, मंदिर में उनकी आराधना भगवान शिव जी के साथ होती है।

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सम्पूर्ण पृथ्वी में सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा जी के गिने-चुने मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है श्री चतुर्मुख ब्रह्मलिंगेश्वर मंदिर। हालांकि, मंदिर में उनकी आराधना भगवान शिव जी के साथ होती है। आंध्र प्रदेश के चेबरोलू नामक स्थान पर निर्मित यह मंदिर आंध्र प्रदेश में ब्रह्मा जी को समर्पित इकलौता मंदिर है। लगभग 2 सदी पूर्व राजा वासीरैड्डी वेंकटद्री नायडू द्वारा निर्मित इस प्राचीन मंदिर प्रांगण क्षेत्र पर चालुक्य, चोल, पल्लव और काकतीय वंश का आधिपत्य रहा है। मंदिर चहुंओर से पानी से घिरा हुआ है तथा एक ओर से इसमें जाने के लिए पानी के बीच तक मार्ग बनाया गया है।

श्री महालक्ष्मी मंदिर
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित देवी महालक्ष्मी को समर्पित इस मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण चालुक्य वंश के दौरान किया गया था। अम्बा बाई के नाम से भी देवी को यहां जाना जाता है। मंदिर की गिनती देश के शक्तिपीठों में होती है। मंदिर में स्थापित देवी प्रतिमा की चार भुजाएं हैं जिन्होंने कर्नाटक शैली में साड़ी पहनी है। काले पत्थर से बनी देवी की मुकुट धारी इस प्रतिमा को रत्नों से सजाया गया है।

प्रतिमा के पीछे देवी के वाहन सिंह की एक मूर्ति भी मौजूद है। देवी के मुकुट में 5 मुख वाला नाग बना है। मंदिर की एक दीवार में पत्थर पर श्रीयंत्र का चित्र भी उकेरा गया है। अधिकतर मंदिरों में देवी की प्रतिमा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर देखती हुई मिलती हैं लेकिन यहां देवी पश्चिम दिशा को देखती हैं।  पश्चिम की दीवार पर एक छोटी-सी खिड़की है, जिसके माध्यम से सूरज की किरणें हर साल मार्च और सितम्बर महीनों की 21 तारीख के आस-पास 3 दिनों के लिए देवी के मुख मंडल को रोशन करती हैं।

ज्ञान सरस्वती मन्दिर
देवी सरस्वती देवी को समर्पित यह मन्दिर गोदावरी नदी के किनारे बासर, तेलंगाना, में स्थित है। यह देवी सरस्वती के दो दुर्लभ मंदिरों में से एक है- दूसरा शारदा पीठ है। ज्ञान और विद्या की देवी सरस्वती के इस मंदिर का निर्माण कन्नड़ राजा बिजिआलुदु ने छठी सदी में किया था। तीर्थयात्री स्कूली शिक्षा की शुरूआत से पहले अपने बच्चों को ‘अक्षर अभ्यासम’ नामक समारोह के लिए इस मंदिर में लाते हैं। बच्चे यहां अक्षरों का अभ्यास करते हैं और ज्ञान की देवी को किताबें, कलम, नोटबुक समर्पित करते हैं।  पास की पहाड़ी पर देवी सरस्वती की मूर्ति है।

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