Edited By Prachi Sharma,Updated: 20 Oct, 2024 12:01 PM
सनातन धर्म में करवाचौथ के पर्व को बेहद अहम माना जाता है। हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर करवाचौथ का त्यौहार मनाया जाता है
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Chauth Mata Mandir: सनातन धर्म में करवाचौथ के पर्व को बेहद अहम माना जाता है। हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर करवाचौथ का त्यौहार मनाया जाता है। इस व्रत में चौथ मैया की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। देश में चौथ माता का प्राचीन और सुप्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर में है।
सनातन धर्म के प्रमुख देवी-देवताओं में चौथ माता का एक महत्वपूर्व स्थान है। चौथ माता को माता पार्वती का ही एक रूप माना गया है, जिनका एकमात्र मंदिर सवाई माधोपुर में एक हजार फुट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है। यूं तो हर महीने की चतुर्थी पर भक्तों का रेला लगा रहता है, लेकिन करवा चौथ पर मेले में श्रद्धालुओं का भारी तांता लग जाता है। इतिहास खंगालने पर ज्ञात होता है कि 1451 में राजा भीम सिंह ने चौथ माता मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि राजा भीम सिंह एक बार संध्या में शिकार पर निकल रहे थे, उसी दौरान उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें रोकना चाहा तो राजा ने कहा कि एक बार चौहान घोड़े पर सवार होने पर शिकार करने के बाद ही उतरता है, यह कहकर राजा भीम सिंह कुछ सैनिकों के साथ जंगल की ओर रवाना हो गए।
जंगल में उन्हें एक मृग दिखाई दिया, जिसका पीछा करने वह निकल पड़े, लेकिन काफी देर तक पीछा करने के बाद वह गायब हो गया। सैनिक भी रास्ता भटक कर अलग हो चुके थे। राजा व्याकुल हो उठा और प्यास से बेचैन भी। काफी तलाश के बाद भी उन्हें कहीं पानी नहीं मिला और वे मूर्छित हो कर घने जंगल में ही गिर पड़े। तेज बारिश के साथ जब उन्हें होश आया तो उनके चारों ओर पानी ही पानी था। सबसे पहले उन्होंने पानी पिया। इस दौरान उनकी नजर घने जंगल में खेलती हुई एक छोटी बच्ची पर पड़ी। राजा भीम सिंह ने उसके पास पहुंच कर उससे पूछा कि यहां अकेले क्या कर रही हो।
बच्ची ने कहा कि यह बताएं कि आपकी प्यास बुझी या नहीं। इसी के साथ उस बच्ची ने देवी का रूप ले लिया। राजा तुरंत उनके चरणों में गिर पड़े और कहा कि हे माता, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, बस मेरी इच्छा है कि आप मेरे राज्य में वास करें। जिसके बाद उनकी प्रतिमा पर्वत पर स्थापित की गई। चौथ माता के मंदिर में नवरात्रि पर भी बड़ा मेला लगता है। इस दौरान देशभर से दर्शन करने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। एक हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 700 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।
यही नहीं, पिछले कई सौ साल से इस मंदिर में अंखड ज्योति जल रही है। इसका रहस्य आज तक कोई नहीं समझ पाया है। मंदिर परिसर में देवी की मूर्ति के अलावा, भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी हैं। यह राजस्थान के 11 प्रसिद्ध मंदिरों में शामिल है। यहां पहुंचने के लिए सवाई माधोपुर शहर से 35 किलोमीटर दूर बरवाड़ा नामक गांव जाना होगा। वह तक जाने के लिए आपको प्राइवेट गाड़ी, बस या टैक्सी की सुविधा मिलती है।