Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Apr, 2022 09:39 AM
हिमाचली लोकगीतों, लोककथाओं व लोकगाथाओं आदि में दो प्रेमियों की अमर प्रेम की कहानियां पुरातन समय से ही सुनी जाती रही हैं। बहुत से प्रेमी ऐसे भी
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Chehni Kothi: हिमाचली लोकगीतों, लोककथाओं व लोकगाथाओं आदि में दो प्रेमियों की अमर प्रेम की कहानियां पुरातन समय से ही सुनी जाती रही हैं। बहुत से प्रेमी ऐसे भी हुए हैं जिन्हें जीते जी सामाजिक बंधनों ने आत्मसात नहीं होने दिया। इनमें कुंजू-चंचलो, रांझू-फुलमू, सुनी भोटली, छींबी-दलपत आदि के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। इनके अमर प्रेम के लोकगीत आज भी जनमानस में गाए जाते हैं परंतु कुछ प्रेमी जोड़े भाग्यशाली रहे हैं जिनके प्यार में कोई रुकावट नहीं आई। उन्होंने प्रेम विवाह किए। परिणय सूत्र में बंधने के बाद जैसे-जैसे उनकी आयु बढ़ती गई, उनका प्यार और भी अधिक गहरा होता गया। शाहजहां और मुमताज का प्यार इसी का उदाहरण रहा है। शाहजहां अपनी बेगम मुमताज को इतना प्यार करता था कि उसने मुमताज के मरने के बाद उसकी याद में ताजमहल बनवाया जो आज भी विश्व के सात आश्चर्यों में अपना स्थान रखता है। दुनिया भर के करोड़ों लोग ताजमहल की भव्यता को देखने आते हैं और मुमताज और शाहजहां के प्रेम को याद करते हैं।
बंजार घाटी में स्थित
इसी तरह का एक स्मारक हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का भी है। यह धरोहर बंजार से 5 किलोमीटर तथा शृंगा ऋषि मंदिर बग्गी से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चैहणी कोठी है। यह गांव इसी कोठी के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। कहते हैं कि इस क्षेत्र का ठाकुर जिसका नाम ढाढिया था, अपनी पत्नी चैहणी से अथाह प्रेम करता था। प्रिय पत्नी के देहावसान के बाद उसने उसकी याद में ही यह अनूठी कोठी बनवाई थी जो आज भी उनके अमर प्रेम को याद दिलाती है।
कभी 15 मंजिलें होती थीं
कहते हैं यह कोठी पहले 15 मंजिल ऊंची थी। 1905 के भूकंप में इसकी पांच मंजिलें गिर गईं। थड़े समेत अब भी इसकी 10 मंजिलें विद्यमान हैं। आजकल इस कोठी में जोगनियों की मूर्तियां विद्यमान हैं।
पुरातत्व की दृष्टि से यह कोठी महत्वपूर्ण वास्तुकृति है। चैहणी कोठी को कुल्लुई काठकुणी चिनाई से बनवाया गया है। इसका आधार वर्गाकार चौकोर है। प्रथम मंजिल से लेकर अंतिम मंजिल तक दीवारों की लम्बाई-चौड़ाई सम्मान है। चिनाई पत्थर और देवदार की लकड़ी की शहतीरों से की गई है। चारों दीवारों पर एक के ऊपर दूसरी शहतीर लगाई हुई है। इनके मध्य में घड़े हुए पत्थरों को चिना गया है। यही क्रम लगातार छत तक चलता हुआ दिखाई देता है। अंतिम मंजिल में दीवारों से बाहर 4 फुट चौड़ा बरामदा बना है। बीच-बीच में झरोखे रखे गए हैं जिनसे चारों ओर दृष्टिपात किया जाता है।
शृंगा ऋषि का भंडार गृह
इस कोठी में 5 मंजिल तक केवल पत्थर का थड़ा बनाया गया है। उसके बाद काठकुणी की चिनाई हुई है। अंतिम मंजिल तक पहुंचने के लिए थड़े से बरामदे तक देवदार के बड़े पेड़ की शहतीर से सीढ़ी लगाई गई है। इस कोठी के साथ ही ऊपर की तरफ शृंगा ऋषि का भंडार गृह 5 मंजिला कोट शैली में बना है जिसमें देवता का अनाज तथा बड़े बर्तन रखे जाते हैं। आज भी इस कोट में ढाढिया ठाकुर के वंशज रहते हैं। ढाढिया ठाकुर की तलवारें इत्यादि इसमें अब भी मौजूद हैं।
यहां पर शृंगा ऋषि का एक मोहरा भी विद्यमान है, जिसे कुल्लू के राजा मान सिंह ने सन् 1674 ई. में देवता को चढ़ाया था। एक मोहरा राजा टेढ़ी सिंह ने भी देवता को चढ़ाया था। विवाह-शादियों तथा हवन-यज्ञ इत्यादि में यह मोहरा लोगों के घरों में ले जाया जाता है।
चैहणी कोठी के दक्षिण में 20 फुट की दूरी पर मुरली मनोहर का पुरातन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण मंडी के राजा मंगल सेन ने करवाया था।
मंगल सेन ने मुरली मनोहर की मूर्ति यहां पर मंगलौर से मंगवाई थी जिसे कुल्लू के शासकों ने स्थापित किया था। यह मंदिर भी 5 मंजिला है। शृंगा ऋषि जब-जब भी इस गांव में आते, तब-तब उनका रथ मुरली मनोहर मंदिर में ही ठहरता। यहां पर होली तथा जन्माष्टमी के उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं। चैहणी कोठी का परिसर पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण रखता है इससे एक किलोमीटर नीचे शृंगा ऋषि मंदिर तक वाहन योग्य सड़क बनी है।