Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Nov, 2024 11:00 AM
Chhat puja 2024: छठ पूजा एक कठिन तपस्या की तरह है। यह ज्यादातर महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाले लोगों को भोजन के साथ ही सुखद जीवन का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रत रखने वाले को...
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Chhath puja 2024: छठ पूजा एक कठिन तपस्या की तरह है। यह ज्यादातर महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाले लोगों को भोजन के साथ ही सुखद जीवन का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रत रखने वाले को फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। 1 बार शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।
दीवाली से छठे दिन सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व छठ पूजा मनाया जाता है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण भी इसे छठ कहा गया है। यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्ति की छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। पुत्र सुख पाने के लिए भी इस पर्व को मनाया जाता है।
उत्तर भारत में छठ पूजा का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन रांची में इस पर्व का विशेष महत्व है। यहां के नगड़ी गांव के लोग नदी या तालाब में अर्घ्य नहीं देते अपितु एक सोते के पास छठ पूजा होती है। माना जाता है कि इस सोते पर द्रौपदी सूर्य उपासना करके सूर्यदेव को अर्घ्य देती थी। यह भी माना जाता है कि वनवास के दौरान पांडव झारखंड के इस गांव में काफी दिनों तक ठहरे थे।
कहा जाता है कि जब पांडवों को प्यास लगी तो उन्हें कहीं भी पानी न मिला। तब द्रौपदी के कहने पर अर्जुन ने जमीन पर तीर मार कर पानी निकाला था। यह भी माना जाता है कि इस सोते के पास ही द्रौपदी सूर्य को अर्घ्य दिया करती थी। सूर्यदेव की उपासना करने से पांडवों पर सदैव सूर्यदेव का आशीर्वाद था। इसी मान्यता के कारण यहां आज भी छठ पूजा धूमधाम से मनाई जाती है।
यहां से कुछ दूरी पर हरही गांव है। माना जाता है कि यहां पर भीम का ससुराल था। भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच के पुत्र का जन्म भी यहीं पर हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार महाभारत में वर्णित एकचक्रा नगरी नाम ही अपभ्रंश होकर अब नगड़ी हो गया है।