Edited By Jyoti,Updated: 31 Oct, 2019 01:31 PM
आज से देशभर के सभी हिस्सों में छठ पर्व की शुरुआत हो गई है। नहाए खाए रस्म के साथ घाटों पर इस महिलाओं ने सूर्य देव की पूजा की। बता दें प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की षष्ठी तिथि से आरंभ होता है।
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आज से देशभर के सभी हिस्सों में छठ पर्व की शुरुआत हो गई है। नहाए खाए रस्म के साथ घाटों पर इस महिलाओं ने सूर्य देव की पूजा की। बता दें प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि से आरंभ होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व में मुख्य रूप से सूर्य देव की पूजा तो होती है साथ ही छठी मैया की भी पूजा होती है। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथों में भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। मान्यता है कि इनकी पूजा से संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है साथ हि जिनके संतान नहीं होती उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ये देवी मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई हैं जिस कारण इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा है। धार्मिक ग्रंथों में इन्हें ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं और कार्तिकेय की प्राणप्रिया बताया है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार इन्हें देव सेना के नाम से भी जाना जाता हैं। इन्हें विष्णुमाया तथा बालदा अर्थात पुत्र देने वाली भी कहा गया है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रूप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं, ये इनकी यानि शिशुओं की रक्षा करने के साथ-साथ इनका भरण-पोषण भी करती हैं।
ये देवी बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं। कहा जाता है कि जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की पूजा की जाती है।
षष्ठी देवी पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार जिस विवाहित जोड़े को संतान प्राप्त होने में बाधा आ रही हो उन्हें रोज इस षष्ठी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा शालिग्राम शिला, कलश, वटवृक्ष का मूल अथवा दीवार पर लाल चंदन से षष्ठी देवी की आकृति बनाकर उनका रोज़ाना पूजन करना चाहिए। परंतु इससे पहले निम्न दिए गए मंत्र का जाप करें।
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।
सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्।
पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे।।
ध्यान के बाद ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा इस अष्टाक्षर मंत्र से आवाहन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्राभूषण, पुष्प, धूप, दीप, तथा नैवेद्यादि उपचारों से देवी का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही देवी के इस अष्टाक्षर मंत्र का यथाशक्ति जप करना चाहिए। देवी के पूजन तथा जप के बाद षष्ठीदेवी स्तोत्र का पाठ श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। इसके पाठ से नि:संदेह संतान की प्राप्ति होगी।
षष्ठी देवी स्तोत्र
नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नम:।
शुभायै देवसेनायै षष्ठी देव्यै नमो नम: ।।
वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:।
सुखदायै मोक्षदायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
शक्ते: षष्ठांशरुपायै सिद्धायै च नमो नम:।
मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
पारायै पारदायै च षष्ठी देव्यै नमो नम:।
सारायै सारदायै च पारायै सर्व कर्मणाम।।
बालाधिष्ठात्री देव्यै च षष्ठी देव्यै नमो नम:।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम।
प्रत्यक्षायै च भक्तानां षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
पूज्यायै स्कन्दकांतायै सर्वेषां सर्वकर्मसु।
देवरक्षणकारिण्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
शुद्ध सत्त्व स्वरुपायै वन्दितायै नृणां सदा।
हिंसा क्रोध वर्जितायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि।
धर्मं देहि यशो देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
भूमिं देहि प्रजां देहि देहि विद्यां सुपूजिते।
कल्याणं च जयं देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।।