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Chitrakoot: श्रीराम का वनवास स्थल चित्रकूट है भारत का नियाग्रा फॉल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Dec, 2022 09:30 AM

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चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर॥

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Chitrakoot Uttar Pradesh: चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीड़। तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर॥

Niagara Falls in Chitrakoot: उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा चित्रकूट वह स्थान है जहां पर भगवान श्री राम ने अपने वनवास का शुरूआती समय बिताया था। यहीं पर राम-भरत मिलाप का प्रसंग हुआ था और भरत ने श्री राम की चरणपादुकाएं ली थीं। यह जगह बहुत ही सुंदर होने की वजह से महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम को वनवास के दौरान इस स्थान पर रहने की सलाह दी थी।

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चित्रकूट का मुख्य जलप्रपात लगभग 15 फुट की ऊंचाई से गिरता है, इसलिए इसे भारत का नियाग्रा फॉल भी कहा जाता है। यह भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है।

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Where is chitrakoot located: शांत और सुंदर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विंध्य पर्वत शृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यों की पहाड़ी कहा जाता है। मंदानिकी नदी के किनारे बने अनेक घाट और मंदिर हैं।

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इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुईया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुईया के घर जन्म लिया था। वर्तमान में प्रयाग से चित्रकूट पहले के मुकाबले लगभग चौगुनी दूरी पर स्थित है। इस समस्या का समाधान यह मानने से हो सकता है कि वाल्मीकि के समय का प्रयाग अथवा गंगा-यमुना का संगम स्थान आज के संगम से बहुत दक्षिण में था।

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History of Chitrakoot: उस समय प्रयाग में केवल मुनियों के आश्रम थे और इस स्थान ने तब तक जनाकीर्ण नगर का रूप धारण नहीं किया था। चित्रकूट की पहाड़ी के अतिरिक्त इस क्षेत्र के अंतर्गत कई ग्राम हैं, जिनमें सीतापुरी प्रमुख है। पहाड़ी पर बांके सिद्ध, देवांगना, हनुमानधारा, सीता रसोई और अनुसूईया आदि पुण्य स्थान हैं।

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दक्षिण पश्चिम में गुप्त गोदावरी नामक सरिता एक गहरी गुफा से निकलती है। सीतापुरी पयोष्णी नदी के तट पर सुंदर स्थान है जो वहीं स्थित है जहां राम-सीता की पर्ण कुटी थी। इसे पुरी भी कहते हैं। पहले इसका नाम ‘जयसिंहपुर’ था और यहां कोलों का निवास था।

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Places to visit in Chitrakoot: कहते हैं पन्ना के राजा अमान सिंह ने महंत चरणदास को जयसिंहपुर दान में दे दिया था। इन्होंने ही इसका नाम सीतापुरी रखा था। राघवप्रयाग, सीतापुरी का बड़ा तीर्थ है। इसके सामने मंदाकिनी नदी का घाट है। चित्रकूट के पास ही कामदगिरी है। इसकी परिक्रमा 3 मील की है। परिक्रमा पथ को 1725 ईस्वी में छत्रसाल की रानी चांदकुंवरि ने पक्का करवाया था।

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कामता से 6 मील पश्चिमोत्तर में भरत कूप नामक विशाल कूप है। तुलसी रामायण के अनुसार इस कूप में भरत ने सब तीर्थों का वह जल डाल दिया था जो, वह श्रीराम के अभिषेक के लिए चित्रकूट लाए थे।

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