Edited By Prachi Sharma,Updated: 31 May, 2024 12:18 PM
जमशेदजी मेहता कराची के प्रसिद्ध कारोबारी व समाजसेवी थे। एक बार उनके पास कराची के जन चिकित्सालय की संचालक समिति के सदस्य चंदा लेने के लिए आए। ये उस अस्पताल को बेहतर बनवाने के लिए लोगों से
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Daan Ka Mahatva : जमशेदजी मेहता कराची के प्रसिद्ध कारोबारी व समाजसेवी थे। एक बार उनके पास कराची के जन चिकित्सालय की संचालक समिति के सदस्य चंदा लेने के लिए आए। ये उस अस्पताल को बेहतर बनवाने के लिए लोगों से दान इकट्ठा कर रहे थे।
उनमें से एक सदस्य मेहता जी से बोला, “महोदय, हमारी प्रबंध समिति ने यह निर्णय लिया है कि जो दस हजार रुपए दान देगा उसका नाम अस्पताल के मुख्य द्वार पर लगने वाले शिलालेख पर लिखा जाएगा।”
उनकी बात सुनकर मेहता जी मुस्कुराने लगे। उन्हें बैठने का संकेत कर उन्होंने अपनी तिजोरी से रुपए निकाल कर सदस्यों के सामने रख दिए। सदस्य रुपए गिनने लगे। कुल नौ हजार नौ सौ पचास रुपए थे। सभी सदस्य हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगे। उन्हें लगा शायद मेहता जी उनकी बात नहीं समझ पाए या उन्होंने गलती से यह राशि दे दी है।
तभी एक सदस्य थोड़ा सकुचाते हुए उनसे बोला, “महोदय, आपके द्वारा नौ हजार नौ सौ पचास रुपए दिए गए हैं। यदि आप पचास रुपए और दे दें तो पूरे दस हजार हो जाएंगे। इस तरह अस्पताल के मुख्य द्वार पर लगने वाले शिलालेख पर आपका नाम आ जाएगा।”
सदस्य की बात सुनकर मेहता जी विनम्रतापूर्वक बोले, “मेरे लिए इतना दान ही उत्तम है। मैं पूरे दस हजार रुपए देकर अपने दान का विज्ञापन नहीं करवाना चाहता। विज्ञापन से दान का महत्व नष्ट हो जाता है। महत्व चिकित्सालय के उद्देश्य का रहना चाहिए, न कि दानदाता का।
यदि दान प्रचारित किया जाता है तो निर्धन व्यक्तियों को त्याग और सेवा करने की प्रेरणा कैसे और कहां से मिलेगी ? वे कम राशि देने में संकोच करेंगे।
सच बात तो यह है कि नि:स्वार्थ सेवा में जो आनंद है वैसा पत्थर पर नाम लिखवाने में नहीं।”
सभी सदस्य उनकी बात सुनकर दंग रह गए। वे मन ही मन उनके उदार विचारों के कायल हो गए।