Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Aug, 2024 01:51 PM
श्री कृष्ण जन्म के बाद मनाया जाने वाला दही हांडी का उत्सव कान्हा जी के भक्तों के लिए बेहद खास होता है। जन्माष्टमी के अगले दिन इस उत्सव को मनाया
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Dahi Handi: श्री कृष्ण जन्म के बाद मनाया जाने वाला दही हांडी का उत्सव कान्हा जी के भक्तों के लिए बेहद खास होता है। जन्माष्टमी के अगले दिन इस उत्सव को मनाया जाता है यानी की कृष्ण पक्ष के नवमी तिथि के दिन। इसे गोपाल कला के नाम से भी जाना जाता है। जैसा की आप सब को तो पता ही है की यशोदा के लाल को दूध से बनी चीजें बहुत प्रिय हैं। उन्हें खुश करने के लिए मक्खन, दूध और दही का भोग लगाया जाता है। ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार, बाल लीला के दौरान श्री कृष्ण गोपियों की हांडियों से मक्खन और दही चुरा कर खाया करते थे और इस लीला को आज के समय में दही हांडी के रूप में मनाते हैं। वैसे तो मुख्य तौर पर यह पर्व महाराष्ट्र और गुजरात का है लेकिन पूरे भारत में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
Why is Dahi Handi festival celebrated क्यों मनाया जाता है दही हांडी उत्सव
दही हांडी का उत्सव नंद के लाला की बाल लीलाओं का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कान्हा दूध, दही और मक्खन खाने के लिए अपने सखाओं के साथ मिलकर आस-पास के घरों में से माखन चुरा कर खाते थे। इस वजह से उन्हें माखन चोर कहा जाता है। नटखट कान्हा से अपने माखन को बचाने के लिए गोपियों ने माखन को एक मिट्टी के पात्र में भरकर ऊपर लटकाना शुरू कर दिया लेकिन वो तो ठहरे माखन चोर, भला उनकी आंखों से माखन कैसे बच जाए। अपने ग्वाल-बालों के साथ मानव श्रृंखला बना कर लल्ला माखन चुरा ही लिया करते थे और इसमें सबसे ऊपर श्री कृष्ण रहते। इस बाल लीला को दही हांडी के रूप में मनाया जाता है। आज भी अगर कोई बालक खाने-पीने वाली चीज चुपचाप खाता है तो उसे उसकी मां प्यार से माखन चोर कहती है।
How to celebrate Dahi Handi festival कैसे मनाते हैं दही हांडी उत्सव
हांडी का अर्थ है मिट्टी से बना एक गोल पात्र। इस उत्सव के लिए हांडी में दही और माखन भर दिया जाता है और इसे ऊंचे स्थान पर लटका देते हैं। इसके बाद लड़के-लड़कियों का समूह गोपाल बनकर इस खेल में हिस्सा लेते हैं। कई जगह इस खेल को प्रतियोगिता के तौर पर भी आयोजित किया जाता है और जीतने वाले को इनाम के साथ सम्मानित करते हैं।