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Lockdown के दौरान घर बैठे करें इस अद्भुत मंदिर के दर्शन

Edited By Jyoti,Updated: 26 Mar, 2020 02:52 PM

danteshwari temple in chhattisgarh

आमतौर पर चैत्र नवरात्रि में माता रानी के विभिन्न शक्तिपीठों के दर्शनों तथा उनकी कृपा पाने के लिए लोग देश विदेश के धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।

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आमतौर पर चैत्र नवरात्रि में माता रानी के विभिन्न शक्तिपीठों के दर्शनों तथा उनकी कृपा पाने के लिए लोग देश विदेश के धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। मगर देश दुनिया में लगातार बढ़ते कोरोना वायरस के कारण तमाम धार्मिक स्थल आदि बंद कर दिए गए हैं। जिस कारण माता रानी के भक्त काफ़ी निराश हो गए हैं। तो आपको बता दें आपको निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम आपको देश की इस लॉकडाउन की स्थिति में आपको समय-समय घर बैठे मां के मंदिरों के दर्शन करवाते रहेंगे। इसी कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं देवी के ऐसे मंदिर के बारे में जो न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में प्रचलित है। इस मंदिर की खास बात ये है कि ये घने जंगलों और पहाड़ों के बीचो-बीच 32 खंभों पर टिका हुआ है। जी हां, सुनकर थोड़ी हैरानी हुई होगा मगर यही इस मंदिर की सबसे खास बात है। कहा जाता है इसके आसपास नक्सलियों का भय होने के बावज़ूद भी यहां दूर दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। मान्यताओं की मानें तो ये वो शक्ति पीठ है जहां माता सती का दंत गिरा था, जिस कारण इस मंदिर को दंतेश्वरी माता के नाम से जाना जाता है।
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बताया जाता है शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित करीब 140 साल पुराना इस मंदिर में सिले हुए वस्त्रों को पहनकर जाने की मनाही है। जिसके चलते यहां पुरुषों को धोती या लुंगी लगाकर ही प्रवेश करने दिया जाता है।

अगर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में बात करें तो छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में स्थित इस मंदिर की कहानी बहुत रोचक व दिलचस्प है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दंतेश्वरी माता मंदिर का निर्माण वारंगल राज्य के प्रतापी राजा अन्नमदेव ने 14वीं शताब्दी में किया था। इन्होंने ही यहां आराध्य देवी मां दंतेश्वरी और मां भुवनेश्वरी देवी की स्थापना की।

तो एक अन्य दंतकथा के अनुसार जब अन्नमदेव मुगलों से पराजित होकर जंगल में भटक रहे थे तो उनकी कुलदेवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि माघ पूर्णिमा के मौके पर वे घोड़े पर सवार होकर विजय यात्रा प्रारंभ करें। वे जहां तक जाएंगे, वहां तक उनका राज्य होगा और स्वयं देवी उनके पीछे चलेंगी। लेकिन इस दौरान उन्हें एक शर्त का पालन करना होगा वो येहै कि किसी हालत में उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना।
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माता का आदेश सुनकर राजा ने वारंगल के गोदावरी के तट से उत्तर की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ की। कथाओं के अनुसार राजा अपने पीछे आ रही माता का अनुमान उनकी पायल की छन थन से लगा रहा था। परंतु शंखिनी और डंकिनी की त्रिवेणी पर नदी की रेत में देवी के पायल की घुंघरुओं की आवाज़ रेत में दब गई और राजा को लगा देवी उसके साथ नहीं आ रही जिस कारण उसने पीछे मुड़कर देख लिया।

जैसे ही राजा ने पीछे देखा देवी वहीं ठहर गईं। ऐसा कहा जाता है इसके कुछ समय बाद मां दंतेश्वरी ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मैं शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर स्थापित हूं। कहा जाता है कि मां दंतेश्वरी की प्रतिमा प्राकट्य मूर्ति है और गर्भगृह में स्थापित मूर्ति विश्वकर्मा द्वारा निर्मित है। शेष मंदिर की बात करें तो इसका निर्माण कालांतर में राजा ने किया।
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