Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Nov, 2024 06:47 AM
Dev Deepawali 2024 Date: सनातन धर्म में सभी व्रत और त्योहारों का बेहद खास महत्व होता है। इन्हीं में से ही एक देव दिवाली का पर्व है। इस पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है।
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Dev Deepawali 2024 Date: सनातन धर्म में सभी व्रत और त्योहारों का बेहद खास महत्व होता है। इन्हीं में से ही एक देव दिवाली का पर्व है। इस पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। दीवाली के 15 दिन बाद पड़ने वाला यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस साल देव दीपावली 15 नवंबर को मनाई जाने वाली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था। जिसके बाद सभी देवी-देवताओं ने शिव जी का आभार प्रकट करने के लिए दीप जलाए थे इसलिए इसे देव दीपावली कहा जाता है। इस दिन पूजा-पाठ और वैदिक मंत्रों का जाप करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन विष्णु चालीसा का पाठ करना भी बहुत शुभ माना जाता है। जो व्यक्ति इस पाठ को करता है, वह विष्णु जी सहित माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त करता है। उसके जीवन में कोई अभाव शेष नहीं बचता और रुके कामों में लाभ मिलने लगता है।
घर में शांति बनाए रखना: पूजा के समय घर के अन्य सदस्य शांति से पूजा स्थल से दूर रहें ताकि कोई विघ्न न हो। यह वास्तु के अनुसार महत्वपूर्ण होता है क्योंकि किसी प्रकार की अशांति पूजा के लाभ को कम कर सकती है। अगर घर में छोटे बच्चे या पालतू जानवर हैं, तो उन्हें पूजा स्थल से दूर रखें, ताकि पूजा विधि सही से संपन्न हो।
मंत्र जाप और ध्यान: इस दिन विशेष रूप से श्री विष्णु सहस्त्रनाम या शिव मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है। यह जाप पूजा के बाद सही दिशा में बैठकर करें और ध्यान रखें कि आप किसी शोर-शराबे से दूर और शांति में बैठे हों।
शिव के 108 नाम का जाप करने से शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
Lord Vishnu Chalisa भगवान विष्णु चालीसा
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय। कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय॥
भगवान विष्णु चालीसा
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा॥
आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदों को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥