Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Jul, 2017 09:20 AM
भगवान को एकादशियां अति प्रिय हैं तथा जो लोग एकादशी व्रत का नियम से पालन करते हैं उन पर प्रभु सदा प्रसन्न रहते हैं। शास्त्रानुसार प्रत्येक मास के दो पक्षों में दो-दो एकादशियां यानि साल भर के
भगवान को एकादशियां अति प्रिय हैं तथा जो लोग एकादशी व्रत का नियम से पालन करते हैं उन पर प्रभु सदा प्रसन्न रहते हैं। शास्त्रानुसार प्रत्येक मास के दो पक्षों में दो-दो एकादशियां यानि साल भर के 12 महीनों में 24 एकादशियां आती हैं परंतु जो मनुष्य इस पुण्यमयी देवशयनी एकादशी का व्रत करता है अथवा इसी दिन से शुरु होने वाले चार्तुमास के नियम अथवा किसी और पुण्यकर्म करने का संकल्प करके उसका पालन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जीव को अक्षय फल की प्राप्ति भी होती है, इसी कारण इन चार महीनों में किए गए पुण्य कर्मों का फल सबसे अधिक होता है और सभी सुखों का भोगता हुआ जीव अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। जिस कामना से कोई इस व्रत को करता है वह अवश्य पूरी होती है, इसी कारण इसे मनोकामना पूरी करने वाला व्रत भी कहा जाता है।
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क्या कहते हैं विद्वान?
अमित चड्डा का कहना है कि इस एकादशी से शुरु किए गए पुण्यकर्मों का फल भी करोड़ों गुणा अधिक है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार जैसे नागों में शेषनाग. पक्षियों में गरुड़, यज्ञों में अश्वमेध यज्ञ, नदियों में गंगा, देवताओं में भगवान विष्णु तथा मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार समस्त व्रतों में एकादशी व्रत सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए सभी लोगों को एकादशी व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। एकादशी व्रत का पारण 5 जुलाई को प्रात: 7.56 और 9.28 के बीच के समय में किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि दान सदा सुपात्र को देना चाहिए क्योंकि कुपात्र को दान देने वाला भी नरकगामी बनता है। दान देते समय मन में किसी प्रकार के अभिमान, अहंकार यानि कर्ता का भाव नहीं रखना चाहिए बल्कि विनम्र भाव से अथवा गुप्त दान करने का अधिक फल है। एकादशी व्रत में मंदिर में दीपदान करना, रात्रि हरिनाम संकीर्तन करना और तुलसी पूजन करने से प्रभु अधिक प्रसन्न होते हैं।
वीना जोशी
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