Edited By Lata,Updated: 08 Feb, 2019 03:19 PM
दस महाविद्याओं में से देवी भुवनेश्वरी को चौथे स्थान पर पूजा जाता है। अपने नाम के अनुरुप ही ये पूरे तीनों लोकों की स्वामिनी हैं।
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दस महाविद्याओं में से देवी भुवनेश्वरी को चौथे स्थान पर पूजा जाता है। अपने नाम के अनुरुप ही ये पूरे तीनों लोकों की स्वामिनी हैं। प्रकृति से सम्बंधित होने के कारण देवी की तुलना मूल प्रकृति से भी की जाती हैं। आद्या शक्ति भुवनेश्वरी स्वरूप में भगवान शिव के समस्त लीला विलास की सहचरी हैं यानि सखी हैं। तो चलिए आज हम आपको इनके जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में बताते हैं।
एक बार मधु-कैटभ नामक महा दैत्यों ने पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मचा रखा था, तब सभी देव मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उनको अपनी निद्रा का त्याग करने के लिए प्रार्थना करने लगे ताकि वे जल्दी से उठकर मधु-कैटभ को मारकर उनकी रक्षा करें। भगवान विष्णु ने निद्रा का त्याग किया तथा जागृत हुए और उन्होंने पांच हजार वर्षों तक मधु-कैटभ नामक दैत्यों से युद्ध किया। बहुत अधिक समय तक युद्ध करते हुए भगवान विष्णु थक गए और वे अकेले ही युद्ध कर रहे थे। अंत में उन्होंने अपने अन्तः कारण की शक्ति योगमाया आद्या शक्ति से सहायता के लिए प्रार्थना की तब देवी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे उन दोनों दैत्यों को अपनी माया से मोहित कर देंगी। योगमाया आद्या शक्ति की माया से मोहित होकर दैत्य भाई भगवान विष्णु से कहने लगे कि हमारा वध ऐसे स्थान पर करो जहां न ही जल हो और न ही स्थल।
भगवान विष्णु ने दोनों दैत्यों को अपनी जंघा पर रख कर अपने चक्र से उनके मस्तक को देह से लग कर दिया। इस प्रकार उन्होंने मधु-कैटभ का वध किया परन्तु वे केवल निमित्त मात्र ही थे। उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और शंकर ने देवी आदि शक्ति योगनिद्रा महामाया की स्तुति की गई, जिससे प्रसन्न होकर आदि शक्ति ने ब्रह्मा जी को सृजन, विष्णु को पालन और शंकर को संहार के देव चुना। ब्रह्मा जी ने देवी आदि शक्ति से प्रश्न किया कि अभी चारों ओर केवल जल ही जल फैला हुआ हैं, पंच-तत्व, गुण, तन-मात्राएं और इन्द्रियां कुछ भी व्याप्त नहीं हैं तथापि तीनों देव शक्ति-हीन हैं। देवी ने मुस्कुराते हुए उस स्थान पर एक सुन्दर विमान को प्रस्तुत किया और तीनों देवताओं को विमान पर बैठ अद्भुत चमत्कार देखने का आग्रह किया गया। तीनों देवों के विमान पर आसीन होने के पश्चात वह देवी-विमान आकाश में उड़ने लगा और उड़कर ऐसे स्थान पर पहुंचा जहां जल नहीं था। वह विमान वायु की गति से चलने लगा तथा एक सागर के तट पर पहुंचा। वहां का दृश्य अत्यंत मनोहर था और अनेक प्रकार के पुष्प वाटिकाओं से सुसज्जित था। तभी वहां देवों ने एक पलंग पर एक दिव्यांगना को बैठे हुए देखा। देवी ने रक्त-पुष्पों की माला और रक्ताम्बर धारण कर रखी थीं। वर, पाश, अंकुश और अभय मुद्रा धारण किए हुए देवी भुवनेश्वरी, त्रि-देवों को सनमुख दृष्टि-गोचर हुई जो सहस्रों उदित सूर्य के प्रकाश के समान कान्तिमयी थी।
ये सब देखने के बाद भगवान विष्णु ने अपने अनुभव से शंकर तथा ब्रह्मा जी से कहा कि ये साक्षात देवी जगदम्बा महामाया है और इसके साथ ही यह देवी हम तीनों और सम्पूर्ण चराचर जगत की कारण रूपा हैं। तीनों देव भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति करने के निमित्त उनके चरणों के निकट गए। तीनों देवों ने देवी के चरण-कमल के नख में सम्पूर्ण जगत को देखा। ये सब देखने के बाद त्रिदेव यह समझ गए की देवी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की जननी हैं।
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