Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Mar, 2021 02:20 PM
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सांस्कृतिक दृष्टि से दक्षिण भारत का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। तमिलनाडु, केरल कुछ ऐसे राज्य हैं, जो अपनी समुद्री आबोहवा के साथ-साथ धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं।
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Dhanupureshwar mandir Tamil nadu: सांस्कृतिक दृष्टि से दक्षिण भारत का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। तमिलनाडु, केरल कुछ ऐसे राज्य हैं, जो अपनी समुद्री आबोहवा के साथ-साथ धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं। यहां बहुत से ऐसे मंदिर मौजूद हैं जिनका संबंध हजार साल पुराना भी है। इनके अलावा पौराणिक काल से संबंध रखने वाले भी बहुत से धार्मिक स्थल दक्षिण भारत में मौजूद हैं।
मध्यकालीन इतिहास पर गौर करें तो उस समय के दक्षिण हिंदू राजाओं ने यहां कई भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया। उत्तर भारत की तुलना में यहां के मंदिर काफी ऊंचे और नक्काशीदार हैं। यानी ये मंदिर सिर्फ धार्मिक पहलू से ही महत्व नहीं रखते बल्कि वास्तु और शिल्पकला के लिए भी जाने जाते हैं। विशेषकर तमिलनाडु और केरल में आपको शैव-वैष्णव दोनों प्रकार के मंदिर मिलेंगे।
धेनुपुरेश्वर मंदिर हिंदुओं का एक मुख्य धार्मिक स्थान है। यहां समय-समय पर भव्य आयोजन किए जाते हैं जिनमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। प्रसाद, पंगुनी उत्तराम आदि यहां मनाए जाने वाले मुख्य त्यौहार हैं। भक्त यहां अपने दुख-दर्द लेकर आते हैं। माना जाता है कि सच्चे मन से यहां भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति की तकलीफें दूर होती हैं।
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ये है कथा- यह मंदिर देवों के देव महादेव को समर्पित दक्षिण भारत का एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर चेन्नई के तांबरम के पास मडंबक्कम में स्थित है। धेनुपुरेश्वर के नाम के पीछे एक दिलचस्प पौराणिक किंवदंती जुड़ी है। माना जाता है कि भगवान धेनुपुरेश्वर ने एक गाय (धेनु) को मोक्ष प्रदान किया था। माना जाता है कि ऋषि कपिल का दूसरा जन्म गाय के रूप में हुआ था, क्योंकि उन्होंने भगवान शिव की पूजा अनुचित तरीके से की थी। शिवलिंग की पूजा के दौरान उन्होंने अपने बाएं हाथ का प्रयोग किया था।
इस पाप के लिए उनका गाय के रूप में पुनर्जन्म हुआ। माना जाता है कि गाय के रूप में ऋषि कपिल ने जमीन के अंदर गढ़े शिवलिंग पर अपने दूध से अभिषेक कर कई दिनों तक शिव आराधना की। गाय के मालिक ने गाय को दूध नष्ट करने पर दंड भी दिया, पर गाय सब कुछ सहकर शिव भक्ति में लीन रही। इसके बाद भगवान शिव का आगमन हुआ और गाय को मोक्ष की प्राप्ति हुई। माना जाता है यहां के राजा को शिवलिंग के स्थान पर मंदिर बनाने का स्वप्र आया, जिसके बाद मंदिर बनाकर तैयार किया गया। भगवान धेनुपुरेश्वर की पत्नी यहां धेनुकंबल के नाम से विराजमान हैं। मंदिर के मुख्य भाग में भगवान धेनुपुरेश्वर स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।
मंदिर का निर्माण मंदिर बनाने के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यह मंदिर चोल राजाओं के शासनकाल के दौरान राजा चोल प्रथम के पिता परंतक चोल द्वितीय ने बनवाया था। परंतक चोल द्वितीय जिन्होंने तंजावुर में प्रसिद्ध बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर चेन्नई और आसपास बने अन्य चोल मंदिरों की तरह ही है। आकार में यह अन्य हिंदू मंदिरों से थोड़ा अलग है। माना जाता है कि इस मंदिर को कलथुगा चोल के शासनकाल के दौरान पत्थरों के साथ समाहित किया गया था। चोल शासनकाल के दौरान निर्मित नक्काशीदार स्तंभ और मूर्तियां यहां आज भी देखी जा सकती हैं। 15वीं शताब्दी के तमिल कवि अरुणागिरिनाथर की रचनाओं में धेनुपुरेश्वर मंदिर का जिक्र मिलता है।
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कैसे जाएं- आप यहां तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा चेन्नई एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप तांबरम रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं, बेहतर सड़क मार्गों से तांबरम दक्षिण भारत के कई बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।