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Dharmik Concept: गलती को सुधारने की गुंजराइश हमेशा होती है

Edited By Jyoti,Updated: 10 Apr, 2021 01:18 PM

dharmik concept in hindi

एक मूर्तिकार था। उसने अपने बेटे को भी मूर्तिकला सिखाई। दोनों बाप-बेटे मूर्तियां बनाते और बाजार में बेचने ले जाते। बाप की मूर्तियां तो डेढ़-दो रुपए में बिकतीं।

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एक मूर्तिकार था। उसने अपने बेटे को भी मूर्तिकला सिखाई। दोनों बाप-बेटे मूर्तियां बनाते और बाजार में बेचने ले जाते। बाप की मूर्तियां तो डेढ़-दो रुपए में बिकतीं। लेकिन लड़के की मूर्तियां केवल आठ-दस आने में ही बिक पातीं।

घर आकर बाप लड़के को मूर्तियों की कमी बताता और उन्हें ठीक करने को कहता। लड़का भी समझदार था। वह मन लगाकर कमियों को दूर करता। धीरे-धीरे उसकी मूर्तियां भी डेढ़-दो रुपए में बिकने लगीं। पिता तब भी उसकी मूर्तियों में कमी बताता और ठीक करने को कहता। लड़का और मेहनत से मूर्ति ठीक करता। इस प्रकार 5 साल बीत गए। अब लड़के की मूर्तिकला में निखार आ गया।

उसकी मूर्तियां अब पांच-पांच रुपए में मिलने लगीं। लेकिन पिता ने अब भी कमियां निकालना नहीं छोड़ा। वह कहता अभी और सुधार की गुंजाइश है। एक दिन लड़का झुंझलाकर बोला, ‘‘अब बस करिए। अब तो मैं आपसे भी अच्छी मूर्ति बनाता हूं। आपको केवल डेढ़-दो रुपए ही मिलते हैं। जबकि मुझे पांच रुपए।’’

तब उसके पिता ने समझाया, ‘‘बेटा जब मैं तुम्हारी उम्र का था। तब मुझे अपनी कला पर घमंड हो गया था जिससे मैंने सुधार बंद कर दिया। इस प्रकार से मैं डेढ़-दो रुपए से अधिक की मूर्ति नहीं बना सका।

मैं चाहता हूं कि तुम वह गलती न करो। किसी भी क्षेत्र में सुधार की सदैव गुंजाइश रहती है। मैं चाहता हूं कि तुम अपनी कला में निरंतर सुधार करते रहो जिससे तुम्हारा नाम बहुमूल्य मूर्तियां बनाने वाले कलाकारों में शामिल हो जाए।’’

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