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Dharmik Concept: ‘राष्ट्र चेतना’ के कीर्ति पुरुष स्वामी विवेकानंद

Edited By Jyoti,Updated: 04 Jul, 2021 03:27 PM

dharmik concept in hindi

‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ स्वामी विवेकानंद के इस शाश्वत संदेश ने भारतीय राष्ट्र को सदियों की गहरी नींद से जगाया और देशवासियों, विशेषकर युवाओं से भारत के

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‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ स्वामी विवेकानंद के इस शाश्वत संदेश ने भारतीय राष्ट्र को सदियों की गहरी नींद से जगाया और देशवासियों, विशेषकर युवाओं से भारत के आध्यात्मिक उत्थान और राष्ट्रीय पुनर्जागरण के लिए आह्वान किया। इस आह्वान से प्रभावित और प्रेरित होकर एक पीढ़ी ने राष्ट्र के पुनरुद्धार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

वह आध्यात्मिक और बौद्धिक प्रतिभा के धनी थे जिन्होंने पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति, जीवन दर्शन और गौरव की दुंदुभी बजाई और सारा यूरोप उनके चरणों में नतमस्तक हो गया। उनका सांसारिक जीवन 12 जनवरी, 1863 को उनके जन्म के साथ शुरू हुआ और 4 जुलाई, 1902 को उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हुआ। इस संक्षिप्त जीवन के दौरान उन्होंने खुद को मानवता के लिए समर्पित कर दिया जो उनके अनुसार मनुष्य की स्वतंत्रता और समानता का एकमात्र स्रोत है।

अपने राष्ट्र को सामाजिक अन्याय, राजनीतिक अधीनता और आर्थिक अभाव के तहत देखकर उन्हें दुख हुआ।  स्वामी विवेकानंद विश्वधर्म स मेलन में भाग लेने अमरीका पहुंचे तो एक बगीचे में एक भद्र महिला उनके पास आई और थोड़ी-सी बातचीत से वह उनसे इतना प्रभावित हो गई कि अपने पति की इच्छा से वह उन्हें अपने आवास पर ले गई और उनके रहने, खाने-पीने की समुचित व्यवस्था कर दी। रात 2 बजे स्वामी जी के कमरे से रोने की आवाज सुनकर उस महिला की नींद खुल गई।

उसने स्वामी जी से पूछा, ‘‘स्वामी जी, आपके रोने का क्या कारण है? आपको क्या कष्ट है? मखमली बिस्तर छोड़कर आप नंगे फर्श पर ठंड से क्यों ठिठुर रहे है?’’

स्वामी जी ने उत्तर दिया, ‘‘मुझे यहां पूरा आराम है पर ये रेशमी गद्दे और ऊनी कपड़े मेरा उपहास कर रहे हैं। मुझे अपने गरीब देश के करोड़ों निर्धन देशवासी नहीं भूलते। वे देश के लिए अनाज पैदा करते हैं पर उन्हें खुद खाने को एक दाना अनाज मयस्सर नहीं, वे ठंडी रातों में ईंट का सिरहाना लगाकर कठोर जमीन पर सो जाते हैं। उन्हीं देशवासियों की याद में मुझे इन रेशमी गद्दों पर नींद नहीं आई।’’

स्वामी विवेकानंद की देश के युवाओं में गहरी आस्था थी। वह उन्हें भारत की सबसे बड़ी संपत्ति मानते थे। उनका मानना था कि युवा ऊर्जा, उत्साह, आशा और साहसिक भावना से भरे हुए हैं।  हमें युवा शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का संतुलित उपयोग करना होगा। कहते हैं कि युवा वायु के समान होता है। जब वायु पुरवाई के रूप में धीरे-धीरे चलती है तो सबको अच्छी लगती है। सबको बर्बाद कर देने वाली आंधी किसी को अच्छी नहीं लगती।
हमें इस पुरवाई का उपयोग विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में करना होगा। -देवेन्द्रराज सुथार

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