Edited By Jyoti,Updated: 05 Aug, 2022 11:59 AM
एक नट था, वह बांस और रस्से पर विविध कला बाजियां दिखाया करता था। सब कला बाजियां दिखाने के बाद वह तलवार का एक रोमांचक करतब दिखाता था जिसे देखकर दर्शक विस्मय से विमुग्ध हो जाते थे। वाह-वाह करते थे।
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एक नट था, वह बांस और रस्से पर विविध कला बाजियां दिखाया करता था। सब कला बाजियां दिखाने के बाद वह तलवार का एक रोमांचक करतब दिखाता था जिसे देखकर दर्शक विस्मय से विमुग्ध हो जाते थे। वाह-वाह करते थे। वह दृश्य था-नंगी तलवार को वह हवा में उछालता और उस चमचमाती हुई तलवार को नाक के अग्र भाग पर झेल लेता। इस दृश्य को देखकर दर्शक धन की वर्षा करते। वह एक बार यह करतब दिखा रहा था। हजारों दर्शक मंत्रमुग्ध होकर वह दृश्य देख रहे थे। चारों ओर तालियों की गडग़ड़ाहट हो रही थी। तलवार की नोक को उसने नाक के अग्र भाग पर झेल लिया।
यह अद्भुत दृश्य देखकर एक वृद्ध ने कहा-धन्य है, तुझे और तेरे से भी बढ़कर धन्य है वह गुरु, जिसने यह महान कला तुझे सिखाई। वृद्ध के शब्द नट के कानों में पड़े। नट सोचने लगा कि मैं निरन्तर बारह वर्ष से अभ्यास कर रहा हूं। इससे गुरु का क्या लेना-देना? मेहनत मेरी और प्रशंसा गुरु की। अत: उसने वृद्ध से कहा-आप मेरी प्रशंसा न करके गुरु की प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?
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वृद्ध ने कहा-वत्स! श्रेय तो गुरु को ही दिया जाता है। उन्हीं के पुण्य प्रभाव से शिष्य कला प्रदॢशत कर सकता है। अभिमानी नट ने कहा-तो आप मेरी प्रशंसा नहीं करेंगे? वृद्ध ने कहा-तुम पुन: अपनी कला दिखाओ, मैं तुम्हारी प्रशंसा करूंगा। नट ने अभिमान के साथ तलवार आकाश में उछाली और ज्यों ही उसने उसे नाक पर झेलना चाहा, वह चूक गया और उसकी नाक चट से कट गई।
वृद्ध ने नट को समझाते हुए कहा-देख वत्स! शिष्य नहीं, गुरु बड़ा होता है। गुरु का अपमान करने का फल तू अब भोग रहा है। भविष्य में कभी भी गुरु का अपमान न करना। —आचार्य ज्ञानचंद्र