Edited By Jyoti,Updated: 20 Oct, 2022 10:49 AM
तेप्सुगन दोको ने 13 वर्ष की छोटी आयु में ही बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली और जन-जन तक भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को पहुंचाने का बीड़ा उठाया। शीघ्र ही उन्हें यह अहसास हो गया कि समाज के हर वर्ग तक बौद्ध धर्म को पहुंचाने हेतु धर्मसूत्रों का प्रकाशन...
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तेप्सुगन दोको ने 13 वर्ष की छोटी आयु में ही बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली और जन-जन तक भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को पहुंचाने का बीड़ा उठाया। शीघ्र ही उन्हें यह अहसास हो गया कि समाज के हर वर्ग तक बौद्ध धर्म को पहुंचाने हेतु धर्मसूत्रों का प्रकाशन स्थानीय भाषा में करना होगा। तेप्सुगन ने प्रण किया कि वह जापान के हर गांव, हर नगर में भिक्षाटन कर अपने संकल्प की पूॢत के लिए जरूरी धन का उपार्जन करेंगे। 10 वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद पूंजी एकत्र हो पाई।
ग्रंथ का प्रकाशन अभी आरंभ हुआ ही था कि ऊजी नदी में भयंकर बाढ़ आ गई और हजारों लोग बेघर हो गए। दया व प्रेम की मूर्तत, संत तेप्सुगन ने समय गंवाए बिना सारा धन जरूरतमंदों में बांट दिया और पुन: भ्रमण पर निकल पड़े। कई वर्षों के प्रयास और धनसंग्रह के उपरांत प्रकाशन आरंभ हुआ, किन्तु उसी वर्ष जापान को महामारी ने आ घेरा। सहयोगियों के तीव्र विरोध के बावजूद तेप्सुगन ने एकत्रित धन पुन: पीड़ितों में बांट दिया।
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कहते हैं कि उसके पश्चात उन्हें 20 वर्ष और लगे पर अंतत: अपना शरीर छोडऩे से एक वर्ष पूर्व संत तेप्सुगन ने जनसामान्य के लिए बोध सूत्रों का प्रथम जापानी संस्करण उपलब्ध कराया, जो आज भी ओबाकु विश्वविद्यालय में सुरक्षित है। सन् 1689 में प्रकाशित यह ग्रंथ तेप्सुगन के संकल्प, करुणा और समर्पण की कहानी कहता है।