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Dharmik Katha: हमेशा रखें परोपकार की भावना

Edited By Jyoti,Updated: 05 Aug, 2021 03:38 PM

dharmik katha in hindi

गौतम बुद्ध भ्रमण कर रहे थे। चलते-चलते वे आम के बगीचे में पहुंचे। वहां एक पेड़ के नीचे गिरे आमों को खाकर उन्होंने अपनी भूख शांत की और उसी पेड़ के नीचे आराम करने लगे।

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गौतम बुद्ध भ्रमण कर रहे थे। चलते-चलते वे आम के बगीचे में पहुंचे। वहां एक पेड़ के नीचे गिरे आमों को खाकर उन्होंने अपनी भूख शांत की और उसी पेड़ के नीचे आराम करने लगे।

कुछ देर बाद बगीचे में युवकों का एक झुंड आया। वे पत्थर मारकर आम तोडऩे लगे। वे इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थे कि उसी पेड़ के दूसरी ओर बुद्ध आराम कर रहे हैं।

एक युवक ने जब आम तोड़ने के लिए पत्थर फैंका लेकिन उसका निशाना चूक गया और वह पेड़ के दूसरी ओर आराम कर रहे बुद्ध के सिर पर जाकर लग गया। बुद्ध के सिर से खून बहने लगा।

वे युवक तुरंत पेड़ की दूसरी ओर गए। वहां उन्होंने देखा कि बुद्ध चोटिल हो गए हैं और उनकी आंखों में आंसू हैं। उन्हें लगा कि अवश्य ही पीड़ा के कारण बुद्ध रो रहे हैं। वह युवक जिसने पत्थर फैंका था, अपराधबोध से भर उठा और कहने लगा, ‘‘भगवन मेरी भूल के कारण आपको पीड़ा हुई, मुझे क्षमा कर दें।’’

इस पर बुद्ध बोले, ‘‘मित्रो, जब तुमने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो उसने बदले में तु हें मीठे फल दिए किंतु जब तुमने मुझे पत्थर मारा तो बदले में तु हें मैं भय और अपराधबोध दे रहा हूं। यही सोच कर मेरी आंखों में आंसू आ गए।’’

इस प्रसंग से सीख मिलती है कि आम के पेड़ की तरह हममें भी परोपकार की भावना होनी चाहिए। लोग चाहे कैसा भी व्यवहार करें, हमें सदा उनकी भलाई के बारे में ही सोचना चाहिए।

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