Edited By Jyoti,Updated: 16 Apr, 2022 11:42 AM
महाराज शीलभद्र तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे। रात्रि में उन्होंने एक आश्रम के निकट अपना पड़ाव डाला। उसी समय राजा शीलभद्र बीमार हो गए। कुशल वैद्य-चिकित्सकों ने उन्हें स्वस्थ कर दिया।
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महाराज शीलभद्र तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे। रात्रि में उन्होंने एक आश्रम के निकट अपना पड़ाव डाला। उसी समय राजा शीलभद्र बीमार हो गए। कुशल वैद्य-चिकित्सकों ने उन्हें स्वस्थ कर दिया। राजा ने आश्रमवासियों के एकांत जीवन पर विचार किया तो उन्होंने एक वैद्य स्थायी रूप से श्रमवासियों की चिकित्सा के लिए रख दिया।
वैद्य को वहां रहते काफी समय बीत गया, किन्तु कोई भी शिष्य या आचार्य अपनी चिकित्सा के लिए उनके पास नहीं आया। वैद्यराज ने एक दिन आचार्य से इसका कारण पूछा।
आचार्य ने कहा, ‘‘वैद्यराज! भविष्य में भी शायद ही कोई आपके पास चिकित्सा के लिए आएगा। प्रत्येक आश्रमवासी को सुबह से सायं तक श्रम करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त जब तक भूख परेशान नहीं करती, कोई भी भोजन नहीं करता। सब अल्पभोजी हैं। जब कुछ भूख शेष रह जाती है, तभी खाना बंद कर देते हैं। इस प्राकृतिक और स्वच्छ वातावरण में सभी को पवित्र वायु, प्रकाश मिलता है, इसलिए कोई भी यहां बीमार नहीं पड़ता।’’
वैद्यराज बोले, ‘‘आचार्य प्रवर! स्वस्थ रहने के लिए यही मूलमंत्र है। तब मैं यहां रहकर क्या करूं? अब मेरा राज दरबार को लौटना ही उचित है।’’
आचार्य को प्रणाम कर वैद्यराज आश्रम से वापस चले गए। प्राकृतिक जीवन ही स्वास्थ्य रक्षा का मूल आधार है।