Dharmik Katha: मन का नियंत्रण में होना बेहद जरूरी

Edited By Jyoti,Updated: 28 Oct, 2022 11:31 AM

dharmik katha in hindi

धनुर्विद्या के कई मुकाबले जीतने के बाद एक युवा धनुर्धर को अपने कौशल पर घमंड हो गया। उसने एक पहुंचे हुए गुरु को मुकाबले के लिए चुनौती दी। गुरु स्वयं बहुत प्रसिद्ध धनुर्धर थे।

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धनुर्विद्या के कई मुकाबले जीतने के बाद एक युवा धनुर्धर को अपने कौशल पर घमंड हो गया। उसने एक पहुंचे हुए गुरु को मुकाबले के लिए चुनौती दी। गुरु स्वयं बहुत प्रसिद्ध धनुर्धर थे। 

युवक ने अपने कौशल का प्रदर्शन करने के लिए दूर एक निशाने पर अचूक तीर चलाया। उसके बाद उसने एक और तीर चलाकर निशाने पर लगे तीर को चीर दिया। फिर उसने अहंकारपूर्वक गुरु से पूछा, "क्या आप ऐसा कर सकते हैं?"

गुरु इससे विचलित नहीं हुए और युवक को अपने पीछे-पीछे एक पहाड़ तक चलने के लिए कहा। युवक समझ नहीं पा रहा था कि गुरु के मन में क्या था। इसलिए वह उनके साथ चल दिया। पहाड़ पर चढ़ने के बाद वे एक ऐसे स्थान पर आ पहुंचे, जहां दो पहाड़ों के बीच बहुत गहरी खाई पर एक कमजोर-सा रस्सियों का पुल बना हुआ था। पहाड़ पर तेज हवाएं चल रही थीं और पुल बेहद खतरनाक तरीके से डोल रहा था। 

उस पुल के ठीक बीचों-बीच जाकर गुरु ने बहुत दूर एक वृक्ष को निशाना लगाकर तीर छोड़ा, जो बिल्कुल सटीक लगा। पुल से बाहर आकर गुरु ने युवक से कहा, "अब तुम्हारी बारी है।" 

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यह कह कर गुरु एक ओर खड़े हो गए।

भय से कांपते-कांपते युवक ने स्वयं को जैसे-तैसे उस पुल पर किसी तरह से जमाने का प्रयास किया। पर वह इतना घबरा गया था कि पसीने से भीग चुकी उसकी हथेलियों से उसका धनुष फिसल कर खाई में समा गया।

गुरु बोले, "इसमें कोई संदेह नहीं कि धनुर्विद्या में तुम बेमिसाल हो, लेकिन उस मन पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं जो किसी तीर को निशाने से भटकने नहीं देता।"
 

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