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मन के विचार हो शुद्ध तो जरूर होते हैं ईश्वर के दर्शन

Edited By Jyoti,Updated: 28 May, 2022 03:31 PM

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एक राजा ने जिद पकड़ ली कि उसे  ईश्वर के दर्शन करने हैं। दरबारियों ने कहा कि महाराज यह कार्य तो मंत्री जी ही कर सकते हैं। राजा ने मंत्री से कहा कि हमें ईश्वर के दर्शन करवाओ, नहीं तो आपको सजा दी जाएगी।

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एक राजा ने जिद पकड़ ली कि उसे ईश्वर के दर्शन करने हैं। दरबारियों ने कहा कि महाराज यह कार्य तो मंत्री जी ही कर सकते हैं। राजा ने मंत्री से कहा कि हमें ईश्वर के दर्शन करवाओ, नहीं तो आपको सजा दी जाएगी। मंत्री ने राजा से एक माह की मोहलत मांगी। दिन पर दिन बीतते गए परन्तु मंत्री को कुछ उपाय ही नहीं सूझ रहा था। मंत्री की पत्नी ने उन्हें सलाह दी कि आप किसी संत के पास जाएं, शायद समस्या का हल मिल जाए।
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इसके बाद मंत्री जी एक संन्यासी से मिले और उन्हें अपनी समस्या बताई। यह सुनकर संन्यासी ने कहा कि मैं आपके राजा को ईश्वर के दर्शन करा दूंगा। मंत्री संन्यासी को लेकर दरबार में पहुंचा और राजा से कहा कि यह महात्मा आपको ईश्वर के दर्शन करा देंगे। महात्मा ने राजा से एक पात्र मंगवाया जिसमें कच्चा दूध भरा हुआ था। महात्मा ने कहा कि राजन अभी आपको ईश्वर के दर्शन करा देता हूं और ऐसा बोलकर वह उस पात्र के दूध को चम्मच से हिलाने लगे। राजा ने महात्मा से पूछा कि आप क्या कर रहे हैं?
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महात्मा बोले दूध से मक्खन निकालने की कोशिश कर रहा हूं। यह सुनकर राजा बोले कि मक्खन ऐसे थोड़े ही निकलता है, पहले दूध को गर्म करना पड़ता है, फिर दही जमानी पड़ती है और फिर उसे बिलोकर उसमें से मक्खन निकालना पड़ता है।

राजा की इस बात पर महात्मा बोले कि राजन जिस प्रकार दूध से सीधा मक्खन नहीं निकाला जा सकता ठीक उसी प्रकार ईश्वर के सीधे-सीधे दर्शन नहीं हो सकते। इसके लिए योग, भक्ति करनी पड़ती है तथा शरीर व मन के विचार को शुद्ध करना पड़ता है। यह सुनते ही राजा के विवेक चक्षु खुल गए। उन्होंने कहा कि मुनिवर आपने ज्ञान रूपी भगवान के दर्शन मुझे करा दिए हैं इसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।
 

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