Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 May, 2023 07:16 AM
धूमावती जयंती पूरे देश में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस त्यौहार को धूमावती महाविद्या के रूप में भी जाना जाता है। यह देवी दस
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Dhumavati Jayanti 2023: धूमावती जयंती पूरे देश में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस त्यौहार को धूमावती महाविद्या के रूप में भी जाना जाता है। यह देवी दस तांत्रिक देवियों का एक समूह है, यह त्यौहार उस दिन के रूप में मनाया जाता है, जब देवी धूमावती के शक्ति रूप का अवतार पृथ्वी पर हुआ था। यह देवी दुर्गा का सबसे उग्र रूप है। मां धूमावती को एक ऐसे शिक्षक के रूप में वर्णित किया गया है जोकि ब्रह्मांड को भ्रामक प्रभावों से बचाने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका बदसूरत रूप भक्त को जीवन की आंतरिक सच्चाई को तलाशने की प्रेरणा देता है। देवी को अलौकिक शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी पूजा भी शत्रुओं के विनाश के लिए की जाती है।
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धूमावती माता की कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं में से एक कथा के अनुसार भगवान शिव जी की पत्नी पार्वती ने उनसे भूख लगने पर कुछ खाने की मांग की। जिसके बाद शिव जी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वो कुछ खाने का प्रबंध करते हैं, लेकिन जब शिव कुछ देर तक भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं, तब पार्वती ने भूख से बेचैन होकर शिव को ही निगल लिया। इसके बाद भगवान शिव के गले में विष होने की वजह से पार्वती जी के शरीर से धुआं निकलने लगा। जहर के प्रभाव से वह भयंकर दिखने लगी। उसके बाद भगवान शिव ने उनसे कहा कि तुम्हारे इस रूप को धूमावती के नाम से जाना जाएगा। भगवान शिव के अभिशाप की वजह से उन्हें एक विधवा के रूप में पूजा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने पति शिव को ही निगल लिया था। इस रूप में वह बहुत क्रूर दिखती हैं।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार जब शिव जी की पत्नी सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें उनको और उनके पति भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। उस यज्ञ में जाने से भगवान शिव ने उन्हें बहुत रोका लेकिन उनके विरोध के बावजूद भी वह यज्ञ में गई। वहां स्वयं को बहुत अपमानित महसूस करने लगीं और उग्र होकर यज्ञ की हवन कुंड में कूद कर उन्होंने आत्महत्या कर ली। इसके कुछ क्षण के बाद ही देवी की उत्पत्ति हुई, जिसे धूमावती के नाम से जाना जाता है।
वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड राष्ट्रीय गौरव रत्न से विभूषित
पंडित सुधांशु तिवारी
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