Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Nov, 2024 06:30 AM
हमारी सनातन कर्मकांडमयी पद्धति में गणेश और लक्ष्मी दोनों का सर्वोपरि महत्व है। प्रत्येक कर्मकांड में गणेश का पूजन अत्यावश्यक माना गया है।
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Diwali 2024: हमारी सनातन कर्मकांडमयी पद्धति में गणेश और लक्ष्मी दोनों का सर्वोपरि महत्व है। प्रत्येक कर्मकांड में गणेश का पूजन अत्यावश्यक माना गया है। इन्हें प्रथम पूज्य देव कहा गया है। हिन्दू सनातन पद्धति में कोई भी पूजा और कर्मकांड गणपति की पूजा के बिना आरंभ नहीं किया जाता। गणपति को सद्बुद्धि का देवता और लक्ष्मी को ऐश्वर्य एवं धन की देवी कहा गया है। दीपावली के पावन अवसर पर लक्ष्मी के साथ-साथ गणपति की आराधना का भी विशेष रूप से विधान है।
हमारे ऋषि-मुनियों का कथन है कि मनुष्य जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए श्रेष्ठ बौद्धिक सम्पत्ति अर्थात सद्बुद्धि और भौतिक सम्पत्ति अर्थात धन की परम आवश्यकता होती है। विघ्नहर्ता गणपति एवं मां लक्ष्मी के पूजन से सद्बुद्धि एवं अपार धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। केवल अपार धन-संपत्ति से मनुष्य का जीवन आनंदमय नहीं हो सकता, उसके लिए आवश्यक है श्रेष्ठ सद्बुद्धि, जो मनुष्य को सदैव अध्यात्म के पथ की ओर अग्रसर करती रहे। प्रथम पूज्य देव गणपति और लक्ष्मी की आराधना से मनुष्य को सद्बुद्धि एवं धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी को महालक्ष्मी का दत्तक पुत्र माना जाता है इसलिए लक्ष्मी पूजन के साथ गणपति का पूजन भी अनिवार्य माना गया है। गणपति के पूजन के बिना मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति नहीं होती। हमारी सनातनी कर्मकांड पद्धति में इसीलिए गणपति स्तोत्र में विशेष रूप से गणेश जी की आराधना करने के लिए प्रेरित किया गया है। गणपति स्तोत्र में भगवान गणेश का स्तवन करते हुए कहा गया है कि-
‘ॐ नमो विघ्न नाशाय सर्वसौख्यप्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने॥’
अर्थात सभी प्रकार के सुख प्रदान करने वाले विघ्न राज को नमन है। जो दुख अरिष्ट आदि ग्रहों का विनाश करने वाले हैं, उस गणपति को नमस्कार है। गणपति स्तोत्र में भगवान गणेश को मोदक प्रिय कहा गया है। इन्हें मन के द्वारा चिंतित अर्थ को प्रदान करने वाला और सदैव वर प्रदान करने वाला भी कहा गया है। मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए गणपति स्तोत्र की आराधना अत्यंत कल्याणकारी मानी गई है।
गणपति स्तोत्र में कहा गया है कि -
‘इदं गणपति स्तोत्रं य: पठेद् भक्तिमान नर:।
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मी न मुन्चतिफ॥’
अर्थात जो मनुष्य इस गणपति स्तोत्र का श्रद्धा भक्ति से पाठ करता है उसके शरीर व घर को लक्ष्मी स्वयं कभी नहीं छोड़ती। भगवान गणेश की आराधना सर्वदा फलदाई मानी गई है। कनकधारा स्तोत्र में मां लक्ष्मी की आराधना के मंत्र निहित हैं। स्तोत्र में बताया गया है कि लक्ष्मी की उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों, संपत्तियों का विस्तार करती है।
जो उपासक भगवान विष्णु की हृदय देवी मां लक्ष्मी का मन, वचन, वाणी और शरीर से भजन करता है, उस पर अपार धन-ऐश्वर्य के माध्यम से मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि होती है। कमल के समान नेत्रों वाली, सम्पूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाली एवं समस्त तुच्छ प्रवृत्तियों को हरण करने वाली मां लक्ष्मी का आश्रय उपासक को सदैव धर्म के मार्ग की ओर अग्रसर करता है।
ऋग्वेद के श्री सूक्त में भी मां लक्ष्मी को सुख-समृद्धि, सिद्धि तथा वैभव की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। इन सभी पदार्थों की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मानव के लिए लक्ष्मी की उपासना करना अनिवार्य है। ऋग्वेद के लक्ष्मी सूक्त के मंत्रों से लक्ष्मी का विधिवत पूजन एवं इन मंत्रों द्वारा अग्निहोत्र में आहुतियां देने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मनीषियों का कहना है कि जिस प्रकार एक माता को अपने पुत्र से अत्यधिक स्नेह होता है और जो भी उसके पुत्र को प्रसन्न करता है, माता सदैव उस पर प्रसन्न रहती है, इसी प्रकार मां लक्ष्मी के दत्तक पुत्र गणपति की विधिवत आराधना से मां लक्ष्मी स्वत: ही प्रसन्न हो जाती हैं। गणेश जी श्रेष्ठ बौद्धिक सम्पत्तियों एवं मां लक्ष्मी भौतिक धन-ऐश्वर्य की प्रतीक हैं। अगर हमारी बुद्धि में श्रेष्ठ देवी प्रवृत्तियों का समावेश है तो हम धन-संपत्ति का अपने जीवन में सदुपयोग करने में सक्षम बन सकते हैं। गणपति और लक्ष्मी की आराधना मनुष्य को उत्तम बौद्धिक शक्ति एवं धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति करवाती है।