Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Nov, 2024 07:34 AM
कार्तिक अमावस्या को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनके राज्यारोहण पर दीपमालाएं प्रज्ज्वलित कर महोत्सव मनाया था।
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Diwali 2024: कार्तिक अमावस्या को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनके राज्यारोहण पर दीपमालाएं प्रज्ज्वलित कर महोत्सव मनाया था।
श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी लिखते हैं-
प्रभु श्री राम के लौटने में एक ही दिन बाकी रह गया, अत: नगर वासी बहुत अधीर हो रहे हैं कि श्री राम अभी तक क्यों नहीं आए। इतने में सब सुंदर शकुन होने लगे और चारों ओर का वातावरण उल्लासपूर्ण हो गया।
श्री राम के विरह में श्री भरत का मन डूब रहा था, उसी समय हनुमान जी ब्राह्मण का रूप धरकर आ गए। हनुमान जी ने दुर्बल शरीर श्री भरत को राम ! राम ! रघुपति ! जपते और कमल के समान नेत्रों से प्रेमाश्रुओं का जल बहाते कुश के आसन पर बैठे देखा। उन्हें देखते ही हनुमान जी अत्यंत हर्षित हुए और भरत जी से कहा- जिनके विरह में आप दिन-रात घुलते रहते हैं, वही रघुकुल तिलक, श्री राम सकुशल आ गए हैं। सुनते ही भरत जी उठकर हनुमान जी से गले मिले। उनके नेत्रों से आनंद के प्रेमाश्रु बह चले। फिर भरत जी के चरणों में सिर नवाकर हनुमान जी तुरंत श्री राम जी के पास लौट गए और जाकर उन्होंने सब कुशल कही। तब प्रभु हर्षित होकर विमान पर चढ़कर चले। इधर भरत जी भी हर्षित होकर अयोध्या पुरी में आए और उन्होंने सब लोगों को सारा समाचार कह सुनाया ! समाचार सुनते ही सब माताएं और नगर निवासी हर्षित होकर दौड़ पड़े। प्रभु को आते जान अवधपुरी में तीनों प्रकार की सुखदायक वायु बहने लगी। सरयू जी अति निर्मल जल वाली हो गईं। गुरु वशिष्ठ जी, कुटुम्बी, छोटे भाई कृपा धाम श्री राम जी की अगवानी के लिए चले।
यहां विमान पर से प्रभु श्री राम वानरों को मनोहर अवधपुरी दिखला रहे हैं और उन्हें बताते हैं, ‘‘हे सुग्रीव ! हे अंगद !! हे लंकापति विभीषण !!! सुनो। यह पुरी अत्यंत पवित्र है। यद्यपि सबने वैकुंठ की बड़ाई की है-परंतु अवधपुरी के समान मुझे वह भी प्रिय नहीं है। यह सुहावनी पुरी मेरी जन्मभूमि है। इसके उत्तर दिशा में जीवों को पवित्र करने वाली सरयू नदी बहती है, जिसमें स्नान करने से मनुष्य बिना परिश्रम मुक्ति पा जाते हैं।’’
प्रभु की वाणी सुनकर सब वानर हर्षित हुए और कहने लगे कि जिस अवध की स्वयं श्री राम जी ने बड़ाई की, वह अवश्य ही धन्य है। भगवान् श्री रामचंद्र जी ने सब लोगों को आते देखा, तो प्रभु ने विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा की। तब वह पृथ्वी पर उतरा। प्रभु को देखकर सब अयोध्यावासी हर्षित हुए। सब लोगों को प्रेम विह्वïल देखकर श्री राम असंख्य रूपों में प्रकट हो कर सबसे एक साथ यथायोग्य मिले। उनकी कृपा की दृष्टि ने सब नर-नारियों को शोक से रहित कर दिया।
श्री जानकी जी के सहित रघुनाथ जी को देखकर ब्राह्मणों ने वेद मंत्रों का उच्चारण किया। आकाश में देवता और मुनि जय हो, जय हो ऐसी पुकार करने लगे।
आनंदकंद श्री राम जी अपने महल को चले। आकाश फूलों की वर्षा से छा गया। नगरवासियों ने सोने के कलशों को मणि-रत्न आदि से अलंकृत कर और सजाकर अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया। सब लोगों ने प्रभु श्री राम के स्वागत में वंदनवार, ध्वजा और पताकाएं लगाईं।
तब से आज तक समस्त भारतवासी प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्षोल्लास से मनाते हैं। घरों के द्वारों तथा मंदिरों को दीप प्रज्ज्वलित कर प्रकाशमान किया जाता है। दीपावली की रात्रि को यह दृश्य देखकर हर कोई उत्साह और हर्षोल्लास से परिपूर्ण होता है।
तुलसीदास जी लिखते हैं- रामराज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई मर्यादा में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। प्रभु श्री राम ने करोड़ों अश्वमेध यज्ञ किए और ब्राह्मणों को अनेकों दान दिए। श्री रामचंद्र वेदमार्ग के पालने वाले, धर्म की धुरी को धारण करने वाले, प्रकृति जन्य सत्व, रज और तम तीनों गुणों से अतीत और ऐश्वर्य में इन्द्र के समान हैं। श्री रामचंद्रजी के राज्य पर प्रतिष्ठित होने पर सबकी विषमता अर्थात आंतरिक भेदभाव मिट गए।
वास्तव में यही संदेश है दीपावली पर्व का, कि हम अपने अंत:करण से मोह और अज्ञान को मिटाकर इसे पवित्र करें और इसमें ज्ञान का दीपक जलाएं। हम ऐसे वैरभाव मुक्त समाज का निर्माण करें, जिसमें सभी प्रेम और सद्भावनापूर्वक रहें। धनतेरस से प्रारम्भ होकर पांच दिनों तक मनाया जाने वाला दीपावली पर्व पूरे वर्ष भर के लिए भारतीय जनमानस के हृदयपटल पर अमिट छाप छोड़ जाता है।
भारत ही नहीं, अपितु विदेशों में बसे भारतीय लोग इस पर्व को श्रद्धा एवं हर्षोल्लास से मनाते हैं। भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीय एकता को समर्पित तथा सामाजिक समरसता से पूर्ण यह पर्वों का मुकुटमणि त्यौहार है, जिसकी प्रतीक्षा पूरे देशवासियों को वर्ष भर रहती है। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में पर्वों के समूह दीपावली पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है।