Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Nov, 2021 04:44 PM
दिवाली का दिन देवी लक्ष्मी को अपने घर में स्थाई रूप से रोकने के लिए खास महत्व रखता है। तभी तो दीपावली से कुछ दिन पहले साफ-सफाई का काम हर घर में होने लगता है। महालक्ष्मी उसी स्थान पर
Diwali 2021: दिवाली का दिन देवी लक्ष्मी को अपने घर में स्थाई रूप से रोकने के लिए खास महत्व रखता है। तभी तो दीपावली से कुछ दिन पहले साफ-सफाई का काम हर घर में होने लगता है। महालक्ष्मी उसी स्थान पर वास करती हैं, जहां सकारात्मक माहौल होता है। दिवाली की रात तंत्र-मंत्र की विशेष सिद्धियों से महालक्ष्मी पूजन होता है ताकि सारा साल भरे रहें धन के भंडार।
शुभता बढ़ाते बंदनवार
वैसे तो बाजार में बंदनवारों की एक विशाल श्रृंखला उपलब्ध है और उन्हें देखते ही खरीदने के लिए मन ललचाने लगता है पर जेब भी देखनी पड़ती है। ऐसे में घर पर ही बंदनवार तैयार करें। आम के ताजा पत्तों और गेंदे के फूलों को धागे में पिरोकर बंदनवार बनाएं। आम के पत्तों से बने बंदनवार पारम्परिक रूप से शुभ होते हैं। ध्यान रखें कि जब भी बंदनवार बनाएं, उस पर शुभ-लाभ अवश्य लिखें।
Decoration of puja ghar: पूजा घर की सजावट
दीवाली पर लक्ष्मी और गणेश पूजा का विशेष महत्व है इसलिए पूजा घर की सजावट पर विशेष ध्यान दें। लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति या तस्वीर के नीचे लाल कपड़ा बिछाएं। एक तरफ कलश-स्थापना करें। इसके लिए कलश को सजाएं। गेंदे के फूलों की लड़िया बनाकर दरवाजे के दोनों ओर व भीतर लगाएं।
Vastu Directions for Diwali Pujan: क्या है पूजा करने की सही दिशा
घर का उत्तरी हिस्सा धन संपत्ति का द्वार होता है। दिवाली पूजन घर के उत्तरी हिस्से में करें। गणेश जी की मूर्त को महालक्ष्मी की मूर्त के बाएं तरफ जबकि मां सरस्वती को दाहिनी तरफ रखें।
What is the right process to perform Lakshmi Pooja on Diwali: सामान्यत: पूर्वाभिमुख होकर अर्चना करना ही श्रेष्ठ स्थिति है। इसमें देव प्रतिमा (यदि हो तो) का मुख और दृष्टि पश्चिम दिशा की ओर होती है। इस प्रकार की गई उपासना हमारे भीतर ज्ञान, क्षमता, सामर्थ्य और योग्यता प्रकट करती है, जिससे हम अपने लक्ष्य की तलाश करके उसे आसानी से हासिल कर लेते हैं।
Vastu Directions for Diwali Pujan: विशिष्ट उपासनाओं में पश्चिमाभिमुख रहकर पूजन करें। इसमें हमारा मुख पश्चिम की ओर होता है और देव प्रतिमा की दृष्टि और मुख पूर्व दिशा की ओर होती है। यह उपासना पद्धति सामान्यत: पदार्थ प्राप्ति या कामना पूर्ति के लिए अधिक प्रयुक्त होती है। उन्नति के लिए कुछ ग्रंथ उत्तरभिमुख होकर भी उपासना का परामर्श देते हैं।