Diwali Stories: 5 दिनों तक मनाए जाने वाले दीपावली पर्व से जुड़ी हैं ये शास्त्रीय कथाएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Sep, 2024 10:13 AM

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कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला दीपावली पर्व भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह दिवाली के दिन अपने उत्साह की पराकाष्ठा पर होता है।

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Diwali katha 2024: कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला दीपावली पर्व भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह दिवाली के दिन अपने उत्साह की पराकाष्ठा पर होता है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री राम चंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने भगवान श्रीराम जी के राज्यारोहण पर दीपमालाएं कर महोत्सव मनाया था। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था।

प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी॥

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प्रभु को देख कर अयोध्यावासी सब हर्षित हुए। वियोग से उत्पन्न सब दु:ख नष्ट हो गए। सब लोगों का प्रेम देख कर कृपालु श्री रामजी असंख्य रूपों में प्रकट हो गए और सबसे (एक ही साथ) यथायोग्य मिले। श्री रघुवीर ने कृपा की दृष्टि से देख कर सब नर-नारियों को शोक से रहित कर दिया। तब से आज तक समस्त भारतवासी प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।

दीपावली अर्थात दीपों की शृंखला  
घरों के द्वारों तथा मन्दिरों को दीप प्रज्वलित कर प्रकाशमान किया जाता है। दीपावली की रात्रि को यह दृश्य देख कर हर कोई उत्साहित और हर्षोल्लास से परिपूर्ण होता है। चराचर जगत में जीवन जीने के लिए प्राणी मात्र को प्रकाश चाहिए। बिना प्रकाश के वह कोई भी कार्य नहीं कर सकता। दीपकों को जलाने से सभी ग्रह अनुकूल हो जाते हैं, साथ ही अन्य देवता भी प्रसन्न होते हैं। इससे तीनों बल - ‘बुद्धिबल’, ‘धनबल’ और ‘देहबल’ की वृद्धि होती है और विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस प्रकार यह दीप ज्योति जप पूजा की साक्षी होती है।

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसम्पदा। शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तुते।।

मूल रूप से दीपावली पर्व का मूल भाव है आसुरी भावों अर्थात नकारात्मक शक्तियों का नाश। 

भगवान श्री कृष्ण भगवद् गीता जी में कहते हैं कि लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवीय प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला। दीपावली पर्व से दैवीय गुणों का संचार होता है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का आध्यात्मिक पक्ष है अज्ञान तिमिर का नाश।

‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात ‘हे ईश्वर! मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएं।’ इसलिए दीपावली पर्व अंधकार पर प्रकाश तथा असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है।

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दीपावली के ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़े कई प्रसंग हैं। जब राजा बलि ने भगवान विष्णु जी से उसके पाताल लोक की रक्षा हेतु वहीं रहने का वर मांगा तो प्रभु वहीं ठहर गए। तब मां लक्ष्मी जी की प्रार्थना पर राजा बलि ने दीपावली पर्व पर उनके पति श्री हरि विष्णु जी को आदर सहित जाने की आज्ञा दी। तब तीनों लोकों में दीपोत्सव पर्व मनाया गया। कठोपनिषद् में वर्णित यम नचिकेता के संवाद में यम जी से ब्रह्म का अनश्वर ज्ञान लेकर जब नचिकेता पृथ्वी लोक पर लौटे तो इस प्रसन्नता में दीपावली पर दीप जलाए गए।

Govardhan puja story गोवर्धन पूजा कथा
दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। एक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण जी की आज्ञा से ब्रजवासियों से इन्द्र की बजाय गोवर्धन की पूजा करने को कहा तो इन्द्र ने अहंकारवश इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा प्रारम्भ कर दी। भगवान श्री कृष्ण जी ने ब्रजवासियों को वर्षा से बचाने के लिए 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे।

अपने इस कृत्य से इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और गोविन्द से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

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Bhai Dooj story भैया दूज कथा
दीपावली से 2 दिन बाद भैया दूज का पर्व आता है। यह दीपावली पर्व का समापन पर्व भी है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करने का दिन है भैया दूज। जब बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को एक समय सूर्य पुत्री  यमुना जी ने अपने भाई यमराज जी  को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। यमराज ने बहन को वर दिया कि जो भी इस दिन यमुना में स्नान करके बहन के घर जा कर श्रद्धापूर्वक उसका सत्कार ग्रहण करेगा उसे व उसकी बहन को यम का भय नहीं होगा। तभी से लोक में यह पर्व यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

इस प्रकार धनतेरस से प्रारम्भ होकर 5 दिनों तक मनाया जाने वाला दीपावली पर्व पूरे वर्ष भर के लिए भारतीय जनमानस के हृदयपटल पर अमिट छाप छोड़ जाता है। भारत ही नहीं अपितु विदेशों में बसे भारतीय इस पर्व को श्रद्धा एवं हर्षोल्लास से मनाते हैं। हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रीय एकता को समर्पित तथा सामाजिक समरसता से पूर्ण यह पर्वों का मुकुटमणि त्यौहार है जिसकी प्रतीक्षा देशवासियों को वर्ष भर रहती है। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में पर्वों के समूह दीपावली पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है।

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