Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Dec, 2018 03:40 PM
महाभारत लेखन में गणेश जी का खास स्थान है। महाभारत में ऐसा वर्णन आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की एक पवित्र गुफा में तपस्या में लीन तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली।
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महाभारत लेखन में गणेश जी का खास स्थान है। महाभारत में ऐसा वर्णन आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की एक पवित्र गुफा में तपस्या में लीन तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली। इसके बाद उनके सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई कि इस काव्य के ज्ञान को सामान्य जन साधारण तक कैसे पहुंचाया जाये क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन था कि कोई इसे बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जाएं। ब्रह्मा जी के कहने पर व्यास गणेश जी के पास पहुंचे और उन्हें महाभारत लिखने के लिए निवेदन किया।
गणेश जी मान तो गए मगर उन्होंने महर्षि वेदव्यास के सामने एक शर्त रखी कि वे अपना लेखन कार्य बीच में नहीं छोड़ेंगे। जहां उन्होंने मन्त्रोच्चारण बन्द किया वहीं पर वह अपनी लेखनी को विराम दे देंगे तथा दोबारा वह लेखनी हाथ में नहीं लेंगे। गणेश जी चाहते थे कि व्यास जी का श्लोक वाचन धारा प्रवाह होना चाहिए तथा उसमें रुकावट का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह
प्रण कोई सामान्य प्रण नहीं था क्योंकि किसी भी श्लोक की रचना के लिए तो कुछ समय अवश्य लगता है परन्तु व्यास जी तो अनेकों ग्रंथों के ज्ञाता और महान ज्ञानी थे।
व्यास जी जानते थे कि यह शर्त बहुत कठनाईयां उत्पन्न कर सकती है। अतः उन्होंने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी कि कोई भी श्लोक लिखने से पहले गणेश जी को उसका अर्थ समझना होगा। इस तरह व्यास जी बीच-बीच में कुछ कठिन श्लोकों को रच देते थे, तो जब गणेश उनके अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में ही व्यास जी कुछ और नये श्लोक रच देते। इस तरह ऋषि व्यास जी तथा गणेश जी ने मिलकर एक ऐसे ग्रन्थ का र्निमाण किया जिसमें एक लाख श्लोक हैं। सम्पूर्ण महाभारत 3 वर्षों के अन्तराल में लिखी गयी।
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