Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jul, 2024 08:35 AM
‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगे’ का नारा देने वाले, राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए अपना जीवन अर्पित करने वाले जनसंघ के संस्थापक, महान शिक्षाविद् व प्रखर राष्ट्रवादी, देश के अमर
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Birth anniversary of Dr Shyama Prasad Mukherjee: ‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगे’ का नारा देने वाले, राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए अपना जीवन अर्पित करने वाले जनसंघ के संस्थापक, महान शिक्षाविद् व प्रखर राष्ट्रवादी, देश के अमर नायक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कारण ही आज जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू हो पाया है। 6 जुलाई, 1901 को कलकता के अत्यंत प्रतिष्ठित परिवार में विख्यात शिक्षाविद् सर आशुतोष मुखर्जी और माता जोगमाया के यहां उनका जन्म हुआ। उन्होंने ही देश विभाजन के समय प्रस्तावित पाकिस्तान में से बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग उठाकर वर्तमान बंगाल और पंजाब को बचाया था।
गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वह आजाद भारत के पहले मंत्रिमंडल में गैर-कांग्रेसी उद्योग मंत्री के रूप में शामिल हुए, किन्तु उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की और 1952 के पहले संसदीय चुनावों में डॉ. मुखर्जी सहित 3 सांसद इस पार्टी के चुन कर आए थे।
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डा. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमंत्री वजीरे-आजम अर्थात प्रधानमंत्री कहलाता था। जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए परमिट लेना पड़ता था। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने संकल्प व्यक्त किया कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या इस उद्देश्य के लिए जीवन बलिदान कर दूंगा।
वह 8 मई, 1953 को बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही 11 मई को इन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। 40 दिन जेल में बंद रहे और 23 जून, 1953 को जेल के अस्पताल में रहस्यमयी परिस्थितियों में इनकी मृत्यु हो गई।