Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Dec, 2024 09:38 AM
Draupadi story mahabharat: द्रौपदी का वैवाहिक जीवन अत्यंत जटिल और अनूठा था। उनका विवाह पांचों पांडवों से हुआ था, जो महाभारत के प्रमुख पात्र थे। पहले उनका विवाह अर्जुन से हुआ था, लेकिन बाद में एक विशेष घटना के कारण वे सभी पांडवों के साथ एक साथ रहनें...
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Draupadi story mahabharat: द्रौपदी का वैवाहिक जीवन अत्यंत जटिल और अनूठा था। उनका विवाह पांचों पांडवों से हुआ था, जो महाभारत के प्रमुख पात्र थे। पहले उनका विवाह अर्जुन से हुआ था, लेकिन बाद में एक विशेष घटना के कारण वे सभी पांडवों के साथ एक साथ रहनें लगीं। यह विवाह दिव्य था, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को पांडवों का जीवनसाथी बनाया। द्रौपदी का विवाह न्याय, धर्म और परंपरा की जटिलताओं से भरा था लेकिन उन्होंने हर स्थिति में अपनी भूमिका निभाई और पांडवों का साथ दिया। उनका जीवन सच्चाई, साहस और बलिदान का प्रतीक था।
Draupadi marriage in mahabharat: प्राचीनकाल में पुरूषों को एक से अधिक पत्नियां रखने का अधिकार था लेकिन स्त्रियां किसी पुरूष की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देख सकती थी। महाभारत काल के समय में द्रौपदी अकेली ऐसी महिला थी जो 5 उत्तम पतियों की पत्नि बनी लेकिन फिर भी कुंवारी थी। आइए जानें कैसे-
Draupadi Birth Story: महाराज द्रुपद ने गुरु द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला लेने के लिए संतान प्राप्ति के उद्देश्य से यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहूति के समय यज्ञकुंड से मुकुट, कुंडल, कवच, त्रोण तथा धनुष धारण किए हुए एक कुमार प्रकट हुआ। यज्ञकुंड से एक कुमारी भी प्रकट हुई। महाकाली ने अंश रूप से उसमें प्रवेश किया था। उसका नाम कृष्णा रखा गया। द्रुपद की पुत्री होने से वह द्रौपदी भी कहलाई। एकचक्रा नगरी में द्रौपदी के स्वयंवर की बात सुन कर पांडव पांचाल पहुंचे। उन्होंने ब्राह्मणों का वेश बनाया था। स्वयंवर सभा में भी वे ब्राह्मणों के साथ ही बैठे।
सभा भवन में ऊपर एक यंत्र था। यंत्र घूमता रहता था। उसके मध्य में एक मत्स्य बना था। नीचे कड़ाहे में तेल रखा था। तेल में मत्स्य की छाया देख कर उसे पांच बाण मारने वाले से द्रौपदी के विवाह की घोषणा की गई थी। बहुत से महारथी असफल रहे। केवल कर्ण ने धनुष चढ़ाया। वह बाण मारने ही जा रहा था कि द्रौपदी ने पुकार कर कहा, ‘‘मैं सूत पुत्र का वरण नहीं करूंगी।’’
अपमान से तिलमिला कर कर्ण ने धनुष रख दिया। राजाओं के निराश हो जाने पर अर्जुन उठे। उन्हें ब्राह्मण जान कर ब्राह्मणों ने प्रसन्नता प्रकट की। धनुष चढ़ा कर अर्जुन ने मत्स्य भेद कर दिया और द्रौपदी ने अर्जुन के गले में जयमाला डाल दी। कुछ राजाओं ने विरोध करना चाहा पर वे अर्जुन और भीम के सामने न टिक सके।
द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने के पश्चात अर्जुन अपने चारों भाईयों सहित अपनी मां कुंती का आर्शीवाद लेने अपनी कुटिया में पहुंचे। पांचों भाईयों को अपनी मां के साथ परिहास करने का मन हुआ। कुंती पूजा कर रही थी। अर्जुन ने कहा," माता! आज भिक्षा में मुझे एक अनमोल वस्तु मिली है।"
कुन्ती ने कहा, "पुत्रों! मेरा आदेश है जो भी मिला है आपस में मिल कर बांट लो।"
माता के ऐसे वचन सुन पांचों भाई और द्रौपदी सन्न रह गए। जब माता पूजा से उठी तो देखा भिक्षा वधू के रूप में है तो उन्हें अपने वचनों पर बहुत पश्चाताप हुआ लेकिन मां कुंती के मुंह से निकला वचन पांडवों के लिए दुविधा का विषय बन गया। किन्तु माता के वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिए द्रौपदी ने पांचों पाण्डवों को पति के रूप में स्वीकार किया।
Draupadi marriage story: इस विवाह को महर्षि वेद व्यास ने स्वयं संपन्न करवाया और उनसे कहा कि द्रौपदी एक वर्ष तक केवल एक पांडव की पत्नि बन कर रहेंगी और जब वह एक वर्ष बाद दूसरे भाई की पत्नि बनेगी तो उसका कौमार्य पुन: लौट आएगा। जब वह एक भाई की पत्नी बन कर रहेंगी तब अन्य चार भाई उनकी तरफ देखेंगे भी नहीं।
शायद अर्जुन को वेद व्यास जी का ऐसा कहना मान्य नहीं था इसलिए वह द्रौपदी के साथ कभी भी सामान्य नहीं रह पाए। प्रत्येक वर्ष द्रौपदी अपना पति बदलती। पांच पतियों की पत्नी होते हुए भी वह सारी उम्र अपने पति के प्यार के लिए तरसती रहीं। पांचों पाण्डवों ने द्रौपदी के अतिरिक्त अलग-अलग स्त्रीयों को अपनी पत्नी बनाया।