Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Mar, 2025 07:58 AM

Dreams: प्रसिद्ध मनोविश्लेषणवादी फ्रायड इस निश्चय पर पहुंचे कि मानव मन बाह्य जगत की अपेक्षा अंतर्जगत से अधिक प्रभावित होता है। काम वासना, कुंठा, ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, अतृप्त वासना आदि कई सूक्ष्म विकृतियां हैं, जो मन को प्रभावित करती हैं। जब वे...
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Dreams: प्रसिद्ध मनोविश्लेषणवादी फ्रायड इस निश्चय पर पहुंचे कि मानव मन बाह्य जगत की अपेक्षा अंतर्जगत से अधिक प्रभावित होता है। काम वासना, कुंठा, ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, अतृप्त वासना आदि कई सूक्ष्म विकृतियां हैं, जो मन को प्रभावित करती हैं। जब वे जागृतावस्था में पूर्ण नहीं होतीं, तब वे अवचेतन मन में चली जाती हैं और स्वप्न में उनकी पूर्ति होती है। स्वप्नों में भेद कर पाना कठिन है, फिर भी उन्हें तीन भागों में बांटा जा सकता है।
साधारण स्वप्न : ये हमारी अभ्यासगत क्रिया या दैनिक कार्य व्यवहार में हमारे अधिक लगाव को ही व्यक्त करते हैं। उदाहरणार्थ, एक बैंक का खजांची रात्रि स्वप्न में नोट गिनने लग जाता है। एक अध्यापक अपने विद्यार्थियों को डांट-डपट करने लग जाता है और एक दुकानदार अपने ग्राहकों से भाव-तोल करने लग जाता है।

अव्यावहारिक किन्तु सत्य : अव्यावहारिक दिखाई देने वाले स्वप्न जीवन की सत्यता से अधिक निकट होते हैं। ये स्वप्न हमारी कुंठाओं, अतृप्त वासनाओं, महत्वाकांक्षाओं, वैर, प्रेम, ईर्ष्या आदि पर आधारित होते हैं। यदि किसी व्यक्ति की अवचेतन कुंठा में किसी स्त्री के प्रति प्रेम संस्कार प्रबल होकर बैठे हैं और वह व्यक्ति उस इच्छित स्त्री को प्राप्त करने में असमर्थ है और यदि वह उसके स्वप्न जगत में आ जाती है तो वह उसे पकड़ने की चेष्टा करता है या प्रणय की याचना करता है।
यह अवचेतन मन में बैठी एक ऐसी सत्यता है जिसे हम नकार नहीं सकते। यदि हम किसी व्यक्ति से वैर करते हैं, परंतु हम निर्बल हैं तो यह वैर कुंठा बनकर हमारे अवचेतन में बैठा है तो हम अपने विरोधी को स्वप्न में ललकारते हैं और उस पर धावा बोल देते हैं।

प्रतीकात्मक स्वप्न : फ्रायड ने प्रतीकात्मक स्वप्नों को सब स्वप्नों से महत्वपूर्ण स्वीकार किया है। प्रतीक से अभिप्राय है चिन्हों, बिंबों अथवा लक्षणों से शुभारंभ परिणामों को जानना। महमूद गजनवी भारत पर आक्रमण करना चाहता था। उसने स्वप्न में पहाड़ के परे लाल लोहा कूटते लौहार को देखा। उसकी रूह रात को पर्वत को पार करके हिन्दुस्तान का सोना देख आई थी। लाल लोहा स्वर्ण का प्रतीक था और पर्वत स्वर्ण के ढेर का।
चंद्रगुप्त मौर्य ने रात्रि के समय राजमहल में चौदह स्वप्न देखे, जिनमें तीन महत्वपूर्ण थे। वे थे, चंद्रमा छलनी-छलनी होते देखा, भूत-भूतनी का नाच देखा और तीसरा 12 फनों वाला सर्प देखा। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने समकालीन भविष्यदृष्टा जैनाचार्य भद्रबाहु स्वामी से इन स्वप्नों का फल पूछा।
उन्होंने इन स्वप्नों का फल बताते हुए कहा कि चंद्रमा के छलनी-छलनी होने का अभिप्राय है समाज और देश में फूट पड़ेगी, भूत-भूतनी के नाच का अभिप्राय है कि पाखंडियों और दुराचारियों का बोलबाला होगा और 12 फनों वाले सर्प को देखने का अभिप्राय है कि देश में 12 वर्षीय दुर्भिक्ष पड़ेगा। कालांतर में ये स्वप्न सत्य सिद्ध हुए। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि स्वप्न लगभग सच ही होते हैं, काल्पनिक नहीं।
