Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Oct, 2022 09:18 AM
आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयदशमी पर देश के कई शहरों में रावण, कुम्भकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में विजयदशमी
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Durga Puja 2022: आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयदशमी पर देश के कई शहरों में रावण, कुम्भकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में विजयदशमी को विजया कहा जाता है और चार दिन पूजा-अर्चना करने के बाद इसी दिन मां दुर्गा को विदाई देने यानी विसर्जन का विधान है।
Who can play sindur Khela: जिस तरह बंगाल की दुर्गा पूजा का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पुराना है, ठीक उसी तरह विसर्जन से पूर्व पूजा पंडाल में देवी दुर्गा के साथ सुहागन महिलाओं द्वारा सिंदूर अर्पण करने का इतिहास भी काफी प्राचीन है। इस रस्म को बंगाल में ‘सिंदूर खेला’ कहा जाता है। नवरात्रि के मौके पर बंगाल में जितनी भव्यता से देवी का स्वागत किया जाता है, उतनी ही आत्मीयता से मां दुर्गा को विदा भी किया जाता है। विदाई से ठीक पहले सिंदूर खेला की रस्म की जाती है, जिसमें सुहागिन महिलाएं भाग लेती हैं। कुछ साल पहले तक इस रस्म में विधवा, तलाकशुदा, किन्नर और नगरवधुओं को शामिल नहीं किया जाता था, लेकिन अब सामाजिक बदलाव के कारण सभी महिलाओं को सिंदूर खेला की रस्म में शामिल किया जाने लगा है।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें
Sindur Khela: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बंगाल में यह रस्म 450 साल से निभाई जा रही है। कहा जाता है कि इस रस्म को निभाने से सुहाग को लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सिंदूर खेला की रस्म में महिलाएं पान के पत्ते से मां के गालों को स्पर्श करती हैं और मां दुर्गा की मांग में सिंदूर भरती हैं, माथे पर सिंदूर लगाती हैं। इसके बाद मां दुर्गा को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है। विधि-विधान से मां की पूजा-अर्चना कर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और देवी दुर्गा से सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
Devi boron: जिस तरह बहन-बेटियों को विदा करते समय उन्हें खाने-पीने का सामान और अन्य चीजें भेंट में दी जाती हैं, ठीक उसी प्रकार मां दुर्गा की विदाई के समय पोटली और शृंगार की अन्य चीजें रखी जाती हैं। यह प्रथा इसलिए निभाई जाती है ताकि देवलोक तक जाने में उन्हें किसी तरह की समस्या न आए। इस प्रथा को ‘देवी बोरन’ भी कहा जाता है।