Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Oct, 2024 03:05 PM
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा सिर्फ शक्ति की आराधना ही नहीं है, बल्कि यह इस राज्य का इतिहास का एक हिस्सा है। बंगाल की राजधानी कोलकाता में कई ऐसे परिवार हैं, जहां पिछले कई सौ सालों
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Durga Puja 2024: पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा सिर्फ शक्ति की आराधना ही नहीं है, बल्कि यह इस राज्य का इतिहास का एक हिस्सा है। बंगाल की राजधानी कोलकाता में कई ऐसे परिवार हैं, जहां पिछले कई सौ सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन होता आ रहा है। ऐसा ही एक जमींदार परिवार है, रानी रासमणी का। जी हां, यह वही रानी रासमणी हैं, जिन्होंने कोलकाता के विख्यात दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना की थी।
Kolkata's second oldest Durga Puja कोलकाता की दूसरी सबसे प्राचीन दुर्गा पूजा
शहर की दूसरी सबसे प्राचीन दुर्गा पूजा 13, रानी रासमणी रोड (पूर्व में 71, फ्री स्कूल स्ट्रीट) में स्थित जमींदारों की इस हवेली में होती है। यह पूजा 1790 में रासमणी के ससुर ने शुरू की थी। रासमणी जब इस परिवार में बहू बन कर आई तब उनकी उम्र महज 11 वर्ष थी और दुर्गा पूजा पूर्व में ही आरंभ हो चुकी थी।
यहां दो बार महिला परिधान में मां काली के अनन्य भक्त रामकृष्ण परमहंस ने पुरोहित के रूप में देवी की पूजा सम्पन्न करवाई थी। रामकृष्ण परमहंस की गिनती महान संतों में होती है। दक्षिणेश्वर में भवतारिणी देवी काली की प्रतिमा की स्थापना रामकृष्ण के बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय के हाथों हुई थी।
रानी रासमणी द्वारा स्थापित मंदिर के मुख्य पुजारी होने के कारण उनके ससुराल के साथ रामकृष्ण परमहंस के काफी अच्छे संबंध थे। वर्ष 1864 में जब रामकृष्ण परमहंस इस हवेली में दुर्गा पूजा करवाने आए तो उन्होंने महिलाओं के परिधान में देवी दुर्गा की पूजा की थी। हालांकि उस समय काफी लोगों ने इसका विरोध भी किया था, लेकिन रामकृष्ण परमहंस ने तब इसकी व्याख्या करते हुए कहा था कि उन्होंने देवी दुर्गा की सखी के रूप में उनकी पूजा की है।
इस परिवार, या यूं कहें कि जमींदार हवेली में पिछले लगभग 233 सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है। इतने सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी भी कारण से इस परिवार में दुर्गा पूजा नहीं की गई हो। रानी रासमणी की शादी के बाद से लेकर उनकी मृत्यु यानी वर्ष 1861 तक उनके ससुराल में दक्षिणेश्वर मंदिर के पुजारी रामकृष्ण परमहंस ने आकर दो बार पूजा की थी।
हवेली में ही विधवा विवाह से संबंधित नियमों को निर्धारित किया गया था
यहां जिस हवेली की बात हो रही है, सिर्फ दुर्गा पूजा ही नहीं बल्कि इसी हवेली में कई एतिहासिक फैसले भी लिए गए हैं। यही वह हवेली है, जहां ईश्वरचंद्र विद्यासागर और रानी रासमणी ने बैठकर विधवा विवाह से संबंधित नियमों को निर्धारित किया था।
वर्ष 1851 में हुई इस बैठक में ही फैसला लिया गया था कि विधवा महिलाओं को समाज की मुख्यधारा से कैसे जोड़ा जाए?
Part of Kolkata Vintage Car Rally कोलकाता विंटेज कार रैली का हिस्सा
इतना ही नहीं, कोलकाता में हर साल आयोजित होने वाली कोलकाता विंटेज कार रैली में इस परिवार की 4 गाड़ियां हिस्सा लेती हैं। इसी हवेली के गैराज में रखी है भारत की इकलौती ‘हिलमैन सुपर इम्प’। ब्रिटिशकालीन इस गाड़ी की दूसरी कोई जोड़ीदार भारत में नहीं है।
Kumari puja for three days तीन दिन कुमारी पूजन
आमतौर पर दुर्गा पूजा के दौरान सभी स्थानों पर सिर्फ नवमी के दिन ही कुमारी कन्याओं की देवी के रूप में पूजा करने का प्रचलन है, लेकिन रानी रासमणी ने अपने ससुराल में आयोजित होने वाली इस पूजा में 3 दिन कुमारी पूजा करने का प्रचलन शुरू किया था, जो आज भी जारी है।
Naivedya is made from 40 maunds of rice 40 मन चावल से बनता था नैवैद्य
संभवत: यह कोलकाता की एकमात्र दुर्गा पूजा है, जहां सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन कुमारी पूजा की जाती है। 1790 से लेकर वर्ष 1960 तक यहां हर वर्ष 40 मन चावल से बना नैवैद्य देवी दुर्गा को अर्पित किया जाता था, लेकिन 60 के दशक में जब महामारी फैली और अकाल पड़ा, तब से यहां सिर्फ 1 मन चावल से बना नैवैद्य ही मां दुर्गा को अर्पण किया जाता है।
पहले इस पूजा में पशुओं की बलि दी जाती थी, जिसमें भैंस और बकरियां होती थी, लेकिन 2003 से यहां पशुओं की बलि पूरी तरह से बंद कर दी गई है।