दर्शनों से भस्म हो जाते हैं कई जन्मों के पाप

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Oct, 2017 11:14 AM

durga temple of varanasi

बाबा विश्वनाथ की नगरी के नाम से मशहूर काशी की पावन भूमि पर कई देवी मंदिरों का भी बड़ा महात्मय है। इसी क्रम में दुर्गाकुण्ड क्षेत्र में मां दुर्गा का भव्य एवं विशाल मंदिर है।

बाबा विश्वनाथ की नगरी के नाम से मशहूर काशी की पावन भूमि पर कई देवी मंदिरों का भी बड़ा महात्मय है। इसी क्रम में दुर्गाकुण्ड क्षेत्र में मां दुर्गा का भव्य एवं विशाल मंदिर है। यह मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का उल्लेख " काशी खंड" में भी मिलता है। यह मंदिर वाराणसी कैन्ट से लगभग 5 कि॰मी॰ की दूरी पर है। लाल पत्थरों से बने अति भव्य इस मंदिर के एक तरफ "दुर्गा कुंड" है। इस कुंड को बाद में नगर पालिका ने फुहारे में बदल दिया, जो अपनी मूल सुंदरता को खो चुका है। इस मंदिर में मां दुर्गा "यंत्र" रूप में विरजमान हैं। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मी जी, मां सरस्वती एवं माता काली भी विराजित हैं। 


इस मंदिर का निर्माण 1760 ई में रानी भवानी जी द्वारा कराया गया था। उस समय मंदिर निर्माण में लगभग पचास हजार रुपए की लागत आई थी। मान्यता यह भी है कि शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने थक कर दुर्गाकुण्ड स्थित मंदिर में विश्राम किया था। दुर्गाकुण्ड क्षेत्र पहले वनाच्छादित था। इस वन में उस समय काफी संख्या में बंदर विचरण करते थे। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में आबादी बढ़ने पर पेड़ों के साथ बंदरों की संख्या भी घट गई। इस मंदिर में देवी का तेज इतना भीषण है कि मां के सामने खड़े होकर दर्शन करने से ही कई जन्मों के पाप जलकर भस्म हो जाते हैं।


रक्त से बना है हवन कुंड
इस मंदिर स्थल पर माता भगवती के प्रकट होने का संबंध अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन की कथा से जुड़ा है। राजकुमार सुदर्शन की शिक्षा-दीक्षा प्रयागराज में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में हो रही थी। शिक्षा पूरी होने के बाद राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश राजा सुबाहू की पुत्री से हुआ। इस विवाह के पीछे रोचक कथा है कि काशी नरेश राजा सुबाहू ने अपनी पुत्री के विवाह योग्य होने पर उसके स्वयंवर की घोषणा करवाई। स्वयंवर दिवस की पूर्व संध्या पर राजकुमारी को स्वप्न में राजकुमार सुदर्शन के संग उनका विवाह होता दिखा। राजकुमारी ने अपने पिता काशी नरेश सुबाहू को अपने स्वप्न की बात बताई। काशी नरेश ने इस बारे में जब स्वयंवर में आए राजा-महाराजाओं को बताया तो सभी इसे अपना अपमान समझ राजा सुदर्शन के खिलाफ हो गए व सभी ने उसे सामूहिक रूप से युद्ध की चुनौती दे डाली।


राजकुमार सुदर्शन ने उनकी चुनौती को स्वीकार कर मां भगवती से युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद मांगा। राजकुमार सुदर्शन ने जिस स्थल पर आदि शक्ति की आराधना की, वहां देवी मां प्रकट हुई और सुदर्शन को विजय का वरदान देकर स्वयं उसकी प्राण रक्षा की। कहा जाता है कि जब राजा-महाराजाओं ने सुदर्शन को युद्ध के लिए ललकारा तो मां आदि शक्ति ने युद्धभूमि में प्रकट होकर सभी विरोधियों का वध कर डाला। इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ कि वहां रक्त का कुंड बन गया, जो वर्तमान में दुर्गाकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। लोगों का तो ये भी मानना है कि इस कुंड में पानी पाताल से आता है। तभी इसका पानी कभी नहीं सूखता।

काशी नरेश सुबहू द्वारा हुआ था मंदिर का र्निमाण
सुदर्शन की रक्षा तथा युद्ध समाप्ति के बाद देवी मां ने काशी नरेश को दर्शन देकर उनकी पुत्री का विवाह राजकुमार सुदर्शन से करने का निर्देश दिया और कहा कि किसी भी युग में इस स्थल पर जो भी मनुष्य सच्चे मन से मेरी आराधना करेगा मैं उसे साक्षात दर्शन देकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगी। कहा जाता है कि उस स्वप्न के बाद राजा सुबाहु ने वहां मां भगवती का मंदिर बनवाया जो कई बार के जीर्णोद्धार के साथ आज वर्तमान स्वरूप में श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।


कुक्कुटेश्वर महादेव के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है मां की पूजा
मंदिर से जुड़ी एक अन्य कथा इसकी विशिष्टता को प्रतिपादित करती है। घटना प्राचीन काल की है एक बार काशी क्षेत्र के कुछ लुटेरों ने इस मंदिर में देवी दुर्गा के दर्शन कर संकल्प लिया था कि जिस कार्य के लिए वह जा रहे हैं, यदि उसमें सफलता मिली तो वे मां आद्य शक्ति को नरबलि चढ़ाएंगे। मां की कृपा से उन्हें अपने कार्य में सफलता मिली और वे मंदिर आकर बलि देने के लिए ऐसे व्यक्ति को खोजने लगे जिसमें कोई दाग न हो। तब उन्हें मंदिर के पुजारी ही बलि के लिए उपयुक्त नजर आए। जब उन्होंने पुजारी से यह बात कहते हुए उनको बलि के लिए पकड़ा तो पुजारी बोले- जरा रुक जाओ जरा मैं माता रानी की नित्य पूजा कर लूं, फिर बलि चढ़ा देना।


पूजा के बाद ज्यों ही लुटेरों ने पुजारी की बलि चढ़ाई, तत्क्षण माता ने प्रकट होकर पुजारी को पुनर्जीवित कर दिया व वर मांगने को कहा। तब पुजारी ने माता से कहा कि उन्हें जीवन नहीं, उनके चरणों में चिरविश्राम चाहिए। माता प्रसन्न हुई और उन्होंने वरदान दिया कि उनके दर्शन के बाद जो कोई भी उस पुजारी का दर्शन नहीं करेगा, उसकी पूजा फलित नहीं होगी। इसके कुछ समय बाद पुजारी ने उसी मंदिर प्रांगण में समाधि ली, जिसे आज कुक्कुटेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।


मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार जिन दिव्य स्थलों पर देवी मां साक्षात प्रकट हुईं वहां मंदिरों में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है, ऐसे मंदिरों में चिह्न पूजा का ही विधान हैं। दुर्गा मंदिर भी इसी श्रेणी में आता है। यहां प्रतिमा के स्थान पर देवी मां के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है। साथ ही यहां यांत्रिक पूजा भी होती है। यही नहीं, काशी के दुर्गा मंदिर का स्थापत्य बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा-यंत्र यानी बीस कोण वाली यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशिला रखी गयी है। यहां मांगलिक कार्य एवं मुंडन इत्यादि में मां के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर हवन कुंड है, जहां प्रतिदिन हवन होते हैं। कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी करते हैं। सावन महिने में एक माह का बहुत मनमोहक मेला लगता है। लोगों का तो ये भी मानना है कि इस कुंड में पानी पाताल से आता है। तभी इसका पानी कभी नहीं सूखता।

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!