Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 May, 2020 01:23 PM
सिंधुराज जयद्रथ के जन्मकाल में ही आकाशवाणी ने यह सुना दिया था कि यह बालक क्षत्रियों में श्रेष्ठ और शूरवीर होगा, परंतु अंत समय में कोई क्षत्रिय वीर शत्रु होकर क्रोधपूर्वक इसका मस्तक काट लेगा। यह सुनकर उसके पिता वृद्धक्षत्र पुत्र स्नेह से प्रेरित होकर...
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सिंधुराज जयद्रथ के जन्मकाल में ही आकाशवाणी ने यह सुना दिया था कि यह बालक क्षत्रियों में श्रेष्ठ और शूरवीर होगा, परंतु अंत समय में कोई क्षत्रिय वीर शत्रु होकर क्रोधपूर्वक इसका मस्तक काट लेगा। यह सुनकर उसके पिता वृद्धक्षत्र पुत्र स्नेह से प्रेरित होकर बोले, ‘‘जो वीर इसका मस्तक काटकर जमीन पर गिरा देगा, उसके सिर के भी सैंकड़ों टुकड़े हो जाएंगे।’’
ऐसा कह कर समय आने पर जयद्रथ को राजा बनाकर वृद्धक्षत्र समन्त पञ्चक क्षेत्र से बाहर जाकर कठोर तपस्या करने लगे। पांडवों के वनवास के समय संयोगवश एक दिन जयद्रथ द्रौपदी का अपहरण करके भागने लगा।
पांडवों को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने क्रोध में भर कर उसका पीछा किया। भीम और अर्जुन तो उसका वध ही कर देना चाहते थे, लेकिन युधिष्ठिर की दया से वह बच गया।
अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए जयद्रथ ने भगवान शंकर की तपस्या की। फलस्वरूप भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे इतना वर दे दिया कि ‘‘तुम केवल एक दिन युद्ध में महाबाहु अर्जुन को छोड़ कर अन्य चार पांडवों को आगे बढ़ने से रोक सकते हो।’’
इस वरदान के प्रभाव से जयद्रथ सुभद्रा कुमार अभिमन्यु का वध होने में निमित्त बन गया। बालक अभिमन्यु के वध पर जब जयद्रथ सहित कौरव खुशी मना ही रहे थे, कि गुप्तचरों ने सूचना दी, ‘‘कल सूर्यास्त तक जयद्रथ को मार डालने की प्रतिज्ञा अर्जुन ने कर ली है।’’
बस जयद्रथ की शूरवीरता जाती रही। वह अपने प्राण बचाने का उपाय खोजने लगा। दुर्योधन की प्रार्थना पर द्रोणाचार्य ने एक चक्रव्यूह की रचना करके भूरिश्रवा, कर्ण, अश्वत्थामा और कृपाचार्य- जैसे महारथियों के साथ एक लाख घुड़सवार, साठ हजार रथी, चौदह हजार गजारोही और इक्कीस हजार पैदल सेना के बीच जयद्रथ को छ: कोस पीछे खड़ा कर दिया। अन्य महारथी युद्ध भूमि के मुहाने पर खड़े होकर जयद्रथ की रक्षा करने लगे।
दूसरे दिन अर्जुन ने क्रोध में भर कर अपने बाणों से शत्रु सेना के सिर काटने आरंभ कर दिए। जयद्रथ तक पहुंचने की जल्दी थी, इस कारण अत्यंत शीघ्रता से अर्जुन रणभूमि को वीरों के मस्तकों से पाट रहे थे। अर्जुन जयद्रथ के पास सूर्यास्त तक कदापि न पहुंच पाए, इस प्रयास में पूरी कौरव सेना तथा दुर्योधन, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और कर्ण इत्यादि महारथी लगे हुए थे।
अश्वविद्या में कुशल भगवान श्रीकृष्ण घोड़ों को जयद्रथ के रथ की ओर हांक रहे थे। मार्ग में कौरव वीर यथाशक्ति उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे। अर्जुन मूर्तिमान काल के समान अभूतपूर्व पराक्रम दिखाते हुए आगे बढ़ रहे थे, पर जयद्रथ कहीं दिखाई ही नहीं पड़ रहा था, जबकि सूर्यास्त होने में कुछ ही समय शेष रह गया था। किंतु जिसके साथ भगवान श्रीकृष्ण हों, उसकी प्रतिज्ञा पूरी होने में कैसे संदेह हो सकता है?
भगवान श्रीकृष्ण ने माया करके सूर्य को ढंक दिया। सूर्यास्त हुआ जानकर जयद्रथ आगे निकल आया। कौरव बड़ी खुशी में भर गए। खुशी के मारे उन्हें सूर्य की ओर देखने का भी ध्यान नहीं रहा। इसी बीच उत्सुकतापूर्वक जयद्रथ सिर ऊंचा करके सूर्य की ओर देखने लगा। इसी समय श्रीकृष्ण का संकेत पाकर अर्जुन ने वज्रतुल्य बाण छोड़ दिया। वह बाण जयद्रथ का सिर काटकर बाज की तरह लेकर आकाश में उड़ा और समंत पञ्चक क्षेत्र के बाहर वहां ले गया, जहां पर जयद्रथ के पिता वृद्धक्षत्र संध्योपासन कर रहे थे। उस बाण ने जयद्रथ के कटे सिर को उनकी गोद में डाल दिया। उनकी गोद से जैसे ही जयद्रथ का कटा सिर जमीन पर गिरा पुत्र के साथ ही साथ पिता का भी अंत हो गया।