उत्तर प्रदेश के इस मंदिर में चोरी-चोरी होती है लंकापति रावण की पूजा !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Oct, 2024 10:23 AM

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Ravan Ka Mandir: दशहरा जिसे विजयदशमी भी कहा जाता है, भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रावण की पूजा की जाती है क्योंकि रावण जो एक महान ज्ञानी और शिव भक्त था, अपने अहंकार और अत्याचार के कारण बुराई का प्रतीक बन...

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Ravan Ka Mandir: दशहरा जिसे विजयदशमी भी कहा जाता है, भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रावण की पूजा की जाती है क्योंकि रावण जो एक महान ज्ञानी और शिव भक्त था, अपने अहंकार और अत्याचार के कारण बुराई का प्रतीक बन गया। रामायण के अनुसार भगवान राम ने रावण का वध किया और सीता माता को मुक्त किया। इस दिन रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं, जो बुराई को नष्ट करने और अच्छे मूल्यों की स्थापना का प्रतीक है। यह पर्व धार्मिकता, नैतिकता और साहस का संदेश देता है।

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Ravana Temple in Budaun: आम भारतीयों के मन में वैसे तो रावण एक खलनायक की तरह हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के बदायूं में एक मंदिर ऐसा भी है जहां लंकेश की विधिवत पूजा की जाती है। दशहरा पर बुराई के प्रतीक को जलाने की तैयारियों की धूम के बीच यह एक दिलचस्प तथ्य है। बदायूं शहर के साहूकार मुहल्ले में रावण का बहुत प्राचीन मंदिर है। हालांकि दशहरे के दिन इस मंदिर के कपाट नहीं खोले जाते। इस मंदिर की स्थापना पंडित बलदेव प्रसाद ने लगभग 100 साल पहले की थी। बलदेव रावण को प्रकाण्ड विद्वान और अद्वितीय शिवभक्त मानकर उसकी पूजा करते थे। उनकी देखादेखी कई और लोगों ने भी मंदिर आकर पूजा शुरू कर दी। इस मंदिर में रावण की आदमकद प्रतिमा स्थापित है, जिसके नीचे शिवलिंग प्रतिष्ठापित किया गया है। मंदिर के दाईं तरफ भगवान विष्णु की प्रतिमा है। मंदिर में रावण की प्रतिमा को भगवान शिव की आराधना करते हुए स्थापित किया गया है। इस मंदिर में रावण के अतिरिक्त जितने भी देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, उनका आकार रावण की प्रतिमा से काफी कम है। पूरे उत्तर भारत में सम्भवत: यही एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां रावण की पूजा होती है।

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स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर की स्थापना करने वाले पंडित बलदेव का तर्क था कि रावण बहुत ज्ञानी था। वह जानता था कि माता सीता लक्ष्मी जी का और श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं। रावण ने इसलिए माता सीता को अपने महल में न रखकर अशोक वाटिका जैसे पवित्र स्थान पर ठहराया था और उनकी सुरक्षा के लिए केवल स्त्रियों को ही तैनात किया गया था। इसी तर्क को रावण की पूजा करने वाले आज तक मानते चले आ रहे हैं।

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कहते हैं इस मंदिर में लोग रावण की पूजा अक्सर चोरी-छुपे ही करते हैं। चूंकि भारतीय संस्कृति में रावण को बुराई का प्रतीक माना गया है शायद इसलिए वे ऐसा करते हैं। उन्होंने बताया कि विजय दशमी के दिन रावण के इस मंदिर के कपाट पूरी तरह बंद रहते हैं और रावण को आदर्श मानने वाले लोग इस दिन अपने घर में कोई खुशी भी नहीं मनाते। भारत एक धर्म प्रधान देश है। देश के अलग-अलग प्रान्तों में कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं। पूजा भले ही अलग-अलग देवी देवताओं की होती हो, लेकिन पूजा दरअसल देवत्व गुणों की ही होती है।

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