Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Apr, 2024 10:56 AM
मान्यता है कि मथुरा छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में एक नया नगर बसाया। इसका प्राचीन नाम कुशस्थली था। कुछ वर्ष पहले नैशनल इंस्टिच्यूट ऑफ ओशनोग्राफी
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Dwarka Nagri: मान्यता है कि मथुरा छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में एक नया नगर बसाया। इसका प्राचीन नाम कुशस्थली था। कुछ वर्ष पहले नैशनल इंस्टिच्यूट ऑफ ओशनोग्राफी को समुद्र में प्राचीन द्वारका के अवशेष प्राप्त हुए थे। यह गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में अरब सागर के द्वीप पर स्थित है। अनेक द्वारों का शहर होने के कारण इस नगर का नाम द्वारका पड़ा। शहर के चारों तरफ कई ल बी दीवारें थीं जिनमें कई दरवाजे थे। ये दीवारें आज भी समुद्र के गर्त में मौजूद हैं।
Copper coins and granite structure found मिले तांबे के सिक्के और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर
1963 में सबसे पहले द्वारका नगरी की खोज डेक्कन कॉलेज पुणे के डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर की थी। इस दौरान करीब 3 हजार साल पुराने बर्तन मिले थे। इसके तकरीबन एक दशक बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अंडरवॉटर आर्कियोलॉजी विंग को समुद्र में कुछ ता बे के सिक्के और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर भी मिले।
Story of dwarka द्वारका की कहानी
द्वारका तीर्थयात्रियों के लिए सात अहम पवित्र स्थानों में से एक है। महाभारत काल की किंवदंतियों में इस शहर का श्रीकृष्ण के साम्राज्य के रूप में जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि यह शहर श्रीकृष्ण के निधन के बाद ही जलमग्न हो गया। द्वारकाधीश मंदिर के पुरोहित मुरली ठाकुर कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण इस शहर में 100 साल तक रहे। द्वारका 84 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला हुआ किलेबंद साम्राज्य था, जो गोमती नदी के किनारे स्थापित था और गोमती का यहां हिन्द महासागर में संगम होता है।
मंदिर के प्रबंधक नारायण ब्रह्मचार्य कहते हैं कि जब भगवान श्रीकृष्ण इस दुनिया को छोड़कर गए तो समुद्र के पानी ने द्वारका को अपने में समा लिया। महाभारत के तीसरे अध्याय में वर्णित है कि जब श्रीकृष्ण 125 साल बाद इस पृथ्वी से स्वर्ग लोक सिधारे तो समुद्र के देवता ने उनके महल के अलावा बाकी जमीन वापस ले ली।
Discovery of submerged Dwarka जलमग्न द्वारका की खोज
काऊंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सी.ए.एस.आई.आर.) के पूर्व प्रमुख और वैज्ञानिक डॉक्टर राजीव निगम के अनुसार, महाभारत में कृष्ण कहते हैं कि द्वारका शहर सागर से निकली जमीन पर बनाया गया था लेकिन जब उसका पानी दोबारा अपनी पुरानी जगह पर आया तो शहर डूब गया। वह बताते हैं कि पानी के नीचे खुदाई का काम मौजूदा द्वारकाधीश मंदिर के पास से शुरू हुआ था। यहां कई मंदिरों की शृंखला मिली है, जिसका मतलब है कि जैसे-जैसे पानी चढ़ता गया, मंदिरों की जगह आगे सरकती गई।
द्वारकाधीश मंदिर
वर्तमान में द्वारका आने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण द्वारकाधीश मंदिर (जगत मंदिर) है। माना जाता है कि इसकी स्थापना 2500 साल पहले भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने की थी। प्राचीन मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है। मंदिर एक छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए 50 से अधिक सीढिय़ां हैं। इसकी मूॢतकला वाली दीवारें गर्भगृह को मु य श्रीकृष्ण मूॢत से जोड़ती हैं।
परिसर के चारों ओर अन्य छोटे मंदिर स्थित हैं। दीवारों पर पौराणिक पात्रों और किंवदंतियों को बारीकी से उकेरा गया है। प्रभावशाली 43 मीटर ऊंचे शिखर के शीर्ष पर 52 गज कपड़े से बना एक झंडा है जो मंदिर के पीछे अरब सागर से आने वाली हल्की हवा में लहराता है।