कुछ ऐसी थी श्रद्धालुओं की स्वामी ज्ञानानंद संग द्वारका व सोमनाथ यात्रा, आप भी डालें एक नजर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Apr, 2025 07:08 AM

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परम पूज्य गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज के सान्निध्य में गत दिनों परिवार सहित भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका धाम जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। महाराजश्री ने कथा के माध्यम से बताया कि किसी भी हालत में, किसी भी समय मंत्र जाप नहीं छूटना...

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परम पूज्य गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज के सान्निध्य में गत दिनों परिवार सहित भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका धाम जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। महाराजश्री ने कथा के माध्यम से बताया कि किसी भी हालत में, किसी भी समय मंत्र जाप नहीं छूटना चाहिए। यात्रा के आखिरी चरण में उन्होंने द्वारकापुरी, गोमती नदी, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गोपी तालाब तथा श्रीकृष्ण के निवास स्थान बेट द्वारका के ऐतिहासिक महत्व के बारे में बताया।

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उन्होंने द्वारकाधीश का नाता गुजरात के डेकोर स्थान से जोड़ते हुए बताया कि एक चरवाहा डेकोर से रोजाना द्वारकापुरी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने आता था। एक दिन उसने कहा कि प्रभु अब आप डेकोर में ही अपना स्थान स्थापित करो तो श्रीकृष्ण ने उससे वायदा किया कि डेकोर में मेरा मंदिर बनाओ तो मैं निश्चित रूप से वहां दर्शन दूंगा।

Gomati River

 
डेकोर में मंदिर बना तो श्रीकृष्ण अपने आप वहां प्रकट हो गए और द्वारकापुरी से गायब हो गए। तब द्वारकापुरी में हड़कम्प मच गया और ढूंढने का सिलसिला शुरू हुआ तो सेवादारों को पता चला कि श्रीकृष्ण तो डेकोर में विराजमान हैं।

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डेकोर जाकर वापस लौटने की प्रार्थना की गई तो श्रीकृष्ण ने कहा कि आप द्वारकापुरी मंदिर में पर्दा लगा कर 9 महीने इंतजार करें तो मैं अवश्य द्वारकापुरी में प्रकट हो जाऊंगा, तो 6 महीने बीतते ही जब किसी ने पर्दा हटा कर देखा तो जितना स्वरूप बना था, उतना ही वहां पर बना रह गया। महाराजश्री ने यह भी बताया कि डेकोर में मंदिर स्थापित होने के पश्चात वह रणछोड़ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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यह भी जानकारी मिली कि किस प्रकार द्वारकाधीश मंदिर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बीच में स्थित है। 4 दिवसीय कथा के बीच में रतन रसिक व नितिन कथूरिया के आनंदमय भजनों पर श्रद्धालु मस्ती में झूमने लगे।

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लुधियाना से कृष्ण कृपा परिवार से आई हुई महिला मंडली का सुंदरकांड का पाठ तथा गुजरात की महिलाओं का डांडिया रास का नजारा देखने लायक था। द्वारका धाम में सत्संग यात्रा का भी आयोजन किया गया।

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महाराजश्री के नेतृत्व में स्थानीय संत समाज स्वामी प्रकाशानंद जी एवं स्वामी अमरेंद्रानंद जी के साथ सैंकड़ों श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हुए सायंकालीन समुद्र तट पर पहुंचे, द्वारकाधीश की महिमा का गुणगान किया गया व सूर्यास्त का मनमोहक नजारा देखने को मिला। इस यात्रा के दौरान पोरबंदर में महात्मा गांधी के जन्म स्थान, सुदामा-कृष्ण की मित्रता की मिसाल प्रतिमा व मंदिर, भालका तीर्थस्थल, जहां श्री कृष्ण ने पांव में तीर लगने के पश्चात अंतिम सांस ली थी और अंत में विदेशी लुटेरों का निशाना बने ऐतिहासिक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के अद्भुत दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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