Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Feb, 2025 07:47 AM
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हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को बहुत खास माना जाता है। पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि के दिन गणेश जी की पूजा करने का विधान है। इस दिन बप्पा की पूजा करने से हर तरह की बाधाओं
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Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2025: हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को बहुत खास माना जाता है। पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि के दिन गणेश जी की पूजा करने का विधान है। इस दिन बप्पा की पूजा करने से हर तरह की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। जो व्यक्ति विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा करता है उसका जीवन कष्टों से मुक्त हो जाता है। यह दिन विशेष रूप से भगवान गणेश के भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा विधिपूर्वक करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर-परिवार में समृद्धि का वास होता है। तो चलिए जानते हैं कब मनाई जाएगी द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी।
Dwijapriya Sankashti Chaturthi द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 15 फरवरी को रात 11 बजकर 52 मिनट से शुरू होगी और 17 फरवरी को रात 2 बजकर 15 मिनट पर इसका समापन होगा। इसके मुताबिक 16 फरवरी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी।
Dwijpriy Sankashti Chaturthi auspicious time द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 5 बजकर 16 मिनट से 6 बजकर 07 मिनट तक
विजय मुहूर्त - दोपहर 2 बजकर 28 मिनट से 3 बजकर 12 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त - शाम 6 बजकर 10 मिनट से 5 बजकर 35 मिनट तक
अमृत काल- रात 9 बजकर 48 मिनट से 11 बजकर 36 मिनट तक
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संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है क्योंकि इस दिन भगवान गणेश का पूजन करने से भक्तों को तमाम बाधाओं और समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इसे विशेष रूप से उन लोगों द्वारा मनाया जाता है जो किसी प्रकार की परेशानी, बीमारी या मानसिक तनाव से जूझ रहे होते हैं। भगवान गणेश का पूजन करना, उनके आशीर्वाद से जीवन की मुश्किलें आसान हो जाती हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है। संकष्टी चतुर्थी का पर्व हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है, जो विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन गणेश जी का व्रत करके उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन इन मंत्रों का जाप
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विध्नम कुरुमेदेव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
ऊं गं गणपतये नमः
ऊं नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकटान निवारय-निवारय स्वाहा
ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा