Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Sep, 2024 08:42 AM
जाने-अनजाने या भूलवश किए गए या हुए कर्मों के फलस्वरूप दुर्भाग्य का जन्म होता है। यह दुर्भाग्य चार प्रकार का होता है : पहला दुर्भाग्य संतान अवरोध के रूप में प्रकट होता है। दूसरा कुलक्षणों से युक्त एवं
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Effects of Sharpit Dosha in Kundli and Remedies: जाने-अनजाने या भूलवश किए गए या हुए कर्मों के फलस्वरूप दुर्भाग्य का जन्म होता है। यह दुर्भाग्य चार प्रकार का होता है : पहला दुर्भाग्य संतान अवरोध के रूप में प्रकट होता है। दूसरा कुलक्षणों से युक्त एवं कलहप्रिय पति या पत्नी का मिलना है। तीसरा दुर्भाग्य परिश्रम का फल न मिलना तथा धन के लिए तरसना है। चौथा दुर्भाग्य शारीरिक हीनता एवं मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा की भावना जाग्रत होना है। दुर्भाग्य के उपरोक्त चारों लक्षण कुंडली में कालसर्प योग का सृजन होने पर स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होते हैं।
Yogas in Vedic Astrology: कभी-कभी सर्वोत्तम ग्रह योग, राजयोग, गजकेशरी योग कुंडली में होने पर भी जातक अपने अंगीकृत कार्य में यश नहीं पाता। हिन्दू मान्यता के अनुसार मनुष्य को वर्तमान जीवन अपने कर्मों के अनुसार ही जीना पड़ता है। इसका प्रमुख कारण मनुष्य द्वारा पूर्वजन्म में किए गए कुकर्मों (पापों) का पल विभिन्न श्रापों के रूप में होता है।
Sharpit Dosh : बृहत पराशर होरा शास्त्र में चौदह प्रकार के श्रापों का उल्लेख मिलता है। पितृ श्राप, प्रेत श्राप, ब्राह्मण श्राप, मातृ श्राप, पत्नी श्राप, सहोदर श्राप, सर्व श्राप इत्यादि श्रापों को भृगु सूत्र में महर्षि भृगु ने भी अनुमोदित किया है।
इन श्रापों के कारण व्यक्ति की उन्नति नहीं होती, उसे पुरुषार्थ का फल नहीं प्राप्त होता है, उसकी संतान जीवित नहीं रहती इत्यादि बुरे प्रभाव का मुख्य कारण श्रापित कुंडलियां ही हैं। श्रापित कुंडलियों को जन्म देने में राहू-केतु की प्रमुख भूमिका होती है। श्रापित कुंडलियों एवं कालसर्प योग की कुंडलियों में काफी हद तक समानता पाई जाती है। जन्म कुंडली में पंचम भाव संतान का स्थान होता है। इस भाव से संतान का विचार किया जाता है। तीसरा भाव भाई का, चतुर्थ भाव माता का, सप्तम भाव पत्नी का तथा दशम भाव पिता का होता है।
इन भावों में राहू, केतु का कुप्रभाव हो अथवा इनके स्वामियों की राहू या केतु से युति हो तो ब्राह्मण श्राप, पत्नी श्राप, मातृ श्राप, पितृ श्राप, प्रेत श्राप, संतानहीनता आदि कुयोग होते हैं।
संतानहीनता मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। जातक की सद्गति संतान के बिना नहीं हो सकती।
Kundali Me Santan Yog: संतानहीनता के विभिन्न ज्योतिषीय योग
यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में पंचमेश लगन में पाप पीड़ित होकर अशुभ योग करके बैठा हो तो जातक संतानहीन होता है।
जातक की जन्म कुंडली में पंचमेश चतुर्थ भाव में नीच का हो या शत्रु भाव में स्थित हो या पाप पीड़ित हो, तो वह व्यक्ति संतानहीन होता है।
यदि किसी जातक की कुंडली में पंचमेश छठे भाव में नीच राशि का या शत्रु क्षेत्रीय या पाप पीड़ित हो तो ऐसा जातक संतानहीन होता है।
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न, पंचम, अष्टम एवं द्वादश भावों में पापी ग्रह हों तो ऐसे व्यक्ति का वंश नष्ट हो जाता है।
यदि लग्न में मंगल, अष्टम भाव में शनि हो तथा पंचम भाव में सूर्य स्थित हो तो ऐसे योग में उत्पन्न व्यक्ति का वंश नष्ट हो जाता है।
यदि सप्तम भाव में शुक्र हो, दशम भाव में चंद्रमा हो और चतुर्थ स्थान में पापी ग्रह बैठे हों तो ऐसे योग में उत्पन्न व्यक्ति का वंश नष्ट हो जाता है।
यदि चंद्रमा से अष्टम भाव में पापी ग्रह हो तथा चतुर्थ भाव भी पापी ग्रहों से युक्त हो तो ऐसे योग में उत्पन्न व्यक्ति का वंश नष्ट हो जाता है।
यदि लग्न, पंचम, अष्टम एवं द्वादश भाव में पापी ग्रह हो अथवा लग्न में मंगल हो अष्टम भाव में शनि तथा पंचम भाव में सूर्य हो तो ऐसे योग में उत्पन्न जातक का वंश नष्ट हो जाता है।
पंचनेश, धनेश एवं सप्तमेश से युक्त नवमेश (भाग्येश) का नवांश (पापी ग्रह) का हो अथवा पापयुक्त हो तो संतानहीनता का योग होता है।
लग्नेश से युक्त मंगल अष्टम भाव में हो और पंचेमश क्रूर ग्रह के षष्ठांश में हो और यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में गुरु (बृहस्पति) लग्नेश एवं सप्तमेश एवं पंचमेश क्रूर ग्रह के षष्ठयांश में हो तो संतानहीनता का योग होता है।
लग्नेश एवं पंचमेश, छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा कारक ग्रह नीच राशि में हो और पंचम भाव में कोई पापी ग्रह बैठा हो तथा जन्म कुंडली में गुरु क्रूर ग्रह के षष्ठयांश में हो, पंचम भाव में अष्टमेश भाव का स्वामी हो तथा पंचमेश अष्टम भाव में परस्पर स्थान परिवर्तन योग करके बैठे हों, तो भी संतानहीनता का योग होता है।
Remedy for Infertility- उपाय : संयुक्त परिवार में रहें। सिर पर चोटी रखें। ससुराल से संबंध न बिगाड़ें। जौ को बड़े स्थान पर बोझ के नीचे दबाएं। जौ को दूध से धोकर बहते हुए पानी में बहाएं। मूली दान करें। कोयला बहते हुए जल में बहाएं। विवाह के समय कन्यादान करें। सरस्वती उपासना करें। सरसों एवं नीलम का दान करें। सुबह के समय सफाई कर्मचारी को मसूर की दाल एवं पैसा दें। नीले कपड़े, स्टील के बर्तन, विद्युत उपकरण दान में न लें बल्कि उसका मूल्य चुकता करके लें। गोमेद मध्यम उंगली में धारण करें।