Edited By Jyoti,Updated: 09 Jul, 2019 01:04 PM
आज आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि दिनांक 09.07.19 मंगलवार को आंठवां गुप्त नवरात्रि मनाया जा रहा है। इस दिन महाविद्या धूमावती का पूजन अर्चन करने का अधकिक महत्व है।
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आज आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को तिथि दिनांक 09.07.19 मंगलवार को गुप्त नवरात्रि का सातवां दिन है। इस दिन महाविद्या धूमावती का पूजन अर्चन करने का अधकिक महत्व है। शास्त्रों के अनुसार मां धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इनकी साधना से जातक के जीवन में निडरता और निश्चिंतता आती है साथ ही आत्मबस का विकास होता है। मान्यता है महाविद्या धूमावती सूकरी के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग अरिष्ट और शत्रुओं का नाश कर देती हैं।
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मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। ऋग्वेद में इन्हें ‘सुतरा’ कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। ज्योतिष विद्वानों का कहना है इनकी की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम करना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा का पालन कर रहे हैं तो लोभ-लालच से दूर रहें और शराब व मांस को छूए तक नहीं। शास्त्रों में इनके रूप को बड़ा मलिन और भयंकर बताया गया है। दरिद्रता नाश के लिए, तंत्र मंत्र, जादू टोना, बुरी नज़र आदि हर तरह के भय से मुक्ति के लिए मां धूमावती की साधना की जाती है।
धूमावती का मंत्र-
‘ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा‘
मोती की माला से इसका 9 माला जाप करें।
धूमावती स्तुति-
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा।
इस स्तुति का नित्य पाठ करने से मां की अमोघ कृपा प्राप्त होती है। घर का दारिद्र्य दूर होता है और हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
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इसके अलावा शत्रु भय और कर्ज़ से मुक्ति के लिए करें धूमावती कवच का जाप-
धूमावती कवच-
श्रीपार्वत्युवाच
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे।।1।।
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम्।।2।।
ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिन:।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावत:।।3।।
ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य पिप्पलाद ऋषि: निवृत छन्द:, श्री धूमावती देवता, धूं बीजं, स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकं, शत्रुहनने पाठे विनियोग:।।
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु।।1।।
दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी।।2।।
मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम्।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम्।।3।।
चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा।।4।।
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया।।5।।
सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम्।।6।।
न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः।।7।।
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत्।।8।।
।।इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं सम्पूर्णम्।।