मुक्ताबाई को हर तरफ दिखते थे विट्ठल जानें, मुक्ति का मार्ग

Edited By ,Updated: 15 Apr, 2017 02:18 PM

everywhere muktabai looked vitthal

जड़-चेतन सब जीव जग सकल राममय जानि... गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन पंक्तियों में कहा है कि जड़-चेतन सभी में उसी परमात्मा का अंश है।

जड़-चेतन सब जीव जग सकल राममय जानि...

 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन पंक्तियों में कहा है कि जड़-चेतन सभी में उसी परमात्मा का अंश है। यही दृष्टि संत मुक्ताबाई की थी। संत निवृत्तिनाथ, संत ज्ञानेश्वर एवं सोपानदेव की छोटी बहन थीं मुक्ताबाई। ये सभी सिद्ध योगी, परम विरक्त एवं सच्चे भक्त थे। बड़े भाई निवृत्तिनाथ ही सबके गुरु थे। मुक्ताबाई कहती थीं ‘विट्ठल ही मेरे पिता हैं। शरीर के माता-पिता तो मर जाते हैं लेकिन हमारे सच्चे माता-पिता, हमारे परमात्मा तो सदा साथ रहते हैं।’’


उसने सत्संग में सुन रखा था कि ‘विट्ठल केवल मंदिर में ही नहीं विट्ठल तो सबका आत्मा बना बैठा है। सारे शरीरों में उसी की चेतना है। वह कीड़ी में छोटा और हाथी में बड़ा लगता है। विद्वानों की विद्या की गहराई में उसी की चेतना है। बलवानों का बल उसी परमेश्वर का है। संतों का संतत्व उसी परमात्मा सत्ता से है। जिसकी सत्ता से आंखें देखती हैं, कान सुनते हैं, नासिका श्वास लेती है, जिह्वा स्वाद का अनुभव करती है वही विट्ठल है।’


मुक्ताबाई किसी पुष्प को देखती तो प्रसन्न होकर कह उठतीं कि विट्ठल बड़े अच्छे हैं। वहीं एक दिन मुक्ताबाई एक नाले में कीड़े को देखकर कह उठी, ‘‘विट्ठल! तुम कितने गंदे हो। ऐसी गंदगी में रहते हो।’


मुक्ताबाई की दृष्टि से जड़ चेतन सबमें विट्ठल ही समाए हैं।

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