Fatehgarh Sahib: छोटे साहिबजादों की याद में हर साल लगता है शहादत जोड़ मेला

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Dec, 2021 11:48 AM

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सरसा नदी पर जब श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी से छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह तथा बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी जी बिछुड़ गए तो उनको गुरु घर का रसोइया गंगू अपने गांव सहेड़ी ले आया। वहां से उसने मुखबरी

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Fatehgarh Sahib: सरसा नदी पर जब श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी से छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह तथा बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी जी बिछुड़ गए तो उनको गुरु घर का रसोइया गंगू अपने गांव सहेड़ी ले आया। वहां से उसने मुखबरी करते हुए साहिबजादों और माता गुजरी जी को गिरफ्तार करवा दिया। उन्हें पहले मोरिंडा और अगले दिन सूबा सरहिन्द के पास भेजा गया। वहां वजीद खान ने माता गुजरी और छोटे साहिबजादों को सरहिन्द के ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। वजीद खान ने साहिबजादों को कई तरह के लालच दिए गए और डराया भी परन्तु वे अपने धर्म पर कायम रहे। दीवान सुच्चा नंद ने वजीद खान के बहुत कान भरे। उसने कहा कि सांप के बच्चे सपोले होते हैं इसलिए इन्हें जल्दी से जल्दी मार दिया जाए।

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मालेरकोटला के नवाब शेर खान को भी कहा गया कि उसके भाई को चमकौर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह ने मार दिया है इसलिए वह उसका बदला साहिबजादों से ले सकता है। नवाब ने कहा कि यदि उसने बदला लेना है तो वह इन छोटे बच्चों से नहीं, बल्कि इनके पिता जी से लेगा।  

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एक कर्मचारी मोती राम मेहरा बहुत रहम दिल मनुष्य था। उसने अपनी कीमती वस्तुएं बेच दीं और किलेदार तथा सिपाहियों को रिश्वत देकर रात के समय साहिबजादों और माता गुजरी जी को दूध छकाया। वजीद खान को इस बारे में पता लगा तो उसने मेहरा जी को परिवार समेत कोहलू के द्वारा पीड़ दिया। आखिर साहिबजादों को दीवार में चिनवा दिया गया जिससे वे बेहोश हो गए।

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बाद में उनको दीवार में से बाहर निकाल कर शहीद कर दिया गया। जब यह घटना घटी तो जोरदार तूफान आया और चारों ओर अंधेरा छा गया। जब माता गुजरी जी को साहिबजादों की शहादत की सूचना मिली तो वह भी अकाल ज्योति में लीन हो गए।

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दीवान टोडरमल जैन ने अपनी सारी जायदाद बेच कर 78 हजार सोने की मोहरों के साथ संस्कार के लिए जगह खरीदी। आज वहीं गुरद्वारा ज्योति सरूप साहिब स्थित है। जिस जगह साहिबजादों को दीवार में चिना गया वहां गुरद्वारा फतेहगढ़ साहिब और जहां इन्हें कैद में रखा गया था वहां गुरद्वारा ठंडा बुर्ज स्थित है।

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बाद में बाबा बंदा सिंह बहादुर ने सरहिन्द पर हमला करके इसकी ईंट से ईंट बजा दी और साहिबजादों की शहादत का बदला लिया। साहिबजादों की याद में हर साल 11, 12 और 13 पौष को शहादत जोड़ मेला फतेहगढ़ साहिब में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।  

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