Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Oct, 2024 08:49 AM
Happy Gandhi Jayanti 2024: नॉट प्लेस की सेंट्रल न्यूज एजेंसी (सीएनए) के एक सेल्समैन बता रहे थे कि भले ही अब बहुत से शब्दों के शैदाई किताबें ऑनलाइन मंगवा रहे हों, फिर भी उनके पास लगातार अमरीकी लेखक लुईस की कलम से लिखी गांधी जी की जीवनी ‘दि लाइफ ऑफ...
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Happy Gandhi Jayanti 2024: नॉट प्लेस की सेंट्रल न्यूज एजेंसी (सीएनए) के एक सेल्समैन बता रहे थे कि भले ही अब बहुत से शब्दों के शैदाई किताबें ऑनलाइन मंगवा रहे हों, फिर भी उनके पास लगातार अमरीकी लेखक लुईस की कलम से लिखी गांधी जी की जीवनी ‘दि लाइफ ऑफ महात्मा गांधी’ को खरीदने वाले आते रहते हैं। इसकी मांग लगातार बनी हुई है। गांधी जी को और अधिक करीब से समझने के लिए इसे पढ़ लेना बेशक अनिवार्य है। फिशर 25 जून,1946 को दिल्ली आते हैं। वे सफदरजंग एयरपोर्ट पर विमान से उतरने के बाद सीधे टैक्सी से जनपथ (तब क्वींस एवेन्यू) पर स्थित इंपीरियल होटल पहुंचे। तब तक पालम एयरपोर्ट नहीं बना था। वे जल्दी में हैं।
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फिशर कहां गए थे बापू से मिलने
फिशर लॉबी में ही अपना सामान रखकर होटल से पंचकुईया रोड पर निकल जाते हैं। उन्हें वाल्मिकी मंदिर में महात्मा गांधी से मिलना है। वे बापू की जीवनी लिख रहे हैं। बापू तब वाल्मिकी मंदिर परिसर के भीतर बने एक छोटे से कमरे में ही रहते थे। फिशर शाम पांचेक बजे वाल्मिकी मंदिर पहुंचे। उन्हें जनपथ से पंचकुईया रोड पर पहुंचने में 15 मिनट से अधिक नहीं लगा होगा। वे कनॉट प्लेस और गोल मार्केट से होते हुए वाल्मिकी मंदिर में पहुंच गए होंगे। तब दिल्ली की सड़कों पर आज की तरह ट्रैफिक कहां होता था। हालांकि तब तक मंदिर मार्ग पूरी तरह से आबाद था। बिड़ला मंदिर, नई दिल्ली काली बाड़ी, हारकोर्ट बटलर स्कूल, सेंट थामस स्कूल वगैरह थे।
वहां थे नेहरू और मृदुला साराभाई भी
फिशर जब वाल्मिकी मंदिर पहुंचे तब उधर पंडित जवाहरलाल नेहरू और मृदुला साराभाई वगैरह समेत बहुत से लोग मौजूद थे। कुछ ही पलों के बाद बापू अपने मंदिर के कमरे से प्रकट होते हैं। बापू उन्हें तुरंत पहचान लेते हैं। वे फिशर से पहले अहमदाबाद में मिल चुके थे। दोनों में मित्रता थी।
वे फिशर का हाल-चाल पूछते हैं। दोनों में प्रेम से कुछ देर तक बातचीत होती रहती है। लुई फिशर इन सब बातों का गांधी जी पर लिखी जीवनी ‘दि लाइफ ऑफ आफ महात्मा’ में उल्लेख करते हैं। लुई फिशर की कलम से लिखी ‘दि लाइफ ऑफ महात्मा गांधी’। अमरीका के यहूदी लेखक लुई फिशर ने यदि बापू की जीवनी न लिखी होती तो संभव है कि दुनिया की बापू के बारे में अधिक से अधिक जानने की प्रबल इच्छा ही नहीं होती। दरअसल रिचर्ड एटनबर्ग ने इस तथ्य को बार-बार माना कि उन्होंने ‘दि लाइफ ऑफ महात्मा गांधी’ को पढ़ने के बाद ही गांधी पर फिल्म बनाने के संबंध में सोचना चालू किया था। निश्चित रूप से ‘गांधी’ फिल्म को देखकर सारे संसार के करोड़ों लोग गांधी को और करीब से जानने लगे हैं। इस साल गांधी फिल्म को रीलिज हुए भी 40 साल हो रहे हैं। यह 1982 में रीलिज हुई थी।
उपन्यास शैली में चलाई कलम
लुई फिशर ने जीवनी बिल्कुल उपन्यास शैली में लिखी है। इसे पढ़ते ही आप इससे जुड़ जाते हैं। इसका आप पर चुंबकीय तरीके से असर होता है। कहना न होगा कि गंभीर साहित्य अध्येताओं से लेकर विद्यार्थियों के लिए यह एक उपयोगी जीवनी है। लुई फिशर की लिखी जीवनी का पहला अध्याय बापू की हत्या से लेकर उनकी शवयात्रा पर आधारित है। यानी उन्होंने अंत को सबसे पहले ले लिया है। इस तरह का साहस फिशर ही कर सकते हैं। ये जीवनी गांधी जी के जीवन में गहरे से झांकती है। इसे पढ़ते हुए कहीं भी पाठक बोर नहीं होता। पाठक को ये नहीं लगता कि ये तथ्य तो उसे पहले से ही मालूम था। गांधी जी की हत्या से लेकर उनकी शवयात्रा का वे जिन तथ्यों के साथ विवरण देते हैं, वे उनकी जीवनी को बाकी से अलहदा बना देते हैं।
वे लिखते हैं- महात्मा गांधी 1918 में दिल्ली में आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही रुके। यहां पर उनसे कॉलेज के छात्र ब्रज कृष्ण चांदीवाला ने मुलाकात की। वह पहली ही मुलाकात के बाद बापू के जीवनपर्यंत के लिए शिष्य बन गए। वह कॉलेज में रहते हुए ही स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गए। उन्होंने खादी के वस्त्र पहनने चालू कर दिए। ब्रज कृष्ण चांदीवाला दिल्ली के एक धनी परिवार से थे। वह ही बापू के लिए बकरी के दूध की व्यवस्था करते थे। गांधी जी का भी उनके प्रति बहुत स्नेह का भाव रहता था। गांधी जी की मृत्यु के बाद ब्रज कृष्ण चांदीवाला ने ही उन्हें स्नान करवाया था। उनके विवरण अतुलनीय हैं।